हरेश कुमार
सनातन धर्म में कोई भी व्यक्ति अपराधियों को बचाने नहीं आता है, चाहे कोई भी हो।वहीं, 'शांतिदूत' कश्मीर से लेकर केरल, बिहार-बंगाल, महाराष्ट्र सबजगह इंसानियत के दुश्मन बने हैं।दंगों में शामिल अपराधियों को ये बचाते हैं। इसके एक नहीं लाखोंलाख उदाहरण हैं।
कश्मीर में समुदाय विशेष के द्वारा लाखों हिंदुओं की हत्या की गई। महिलाओं, लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किए गए। आरी से शरीर काटा गया। उनकी संपत्तियों पर अवैध कब्जा किए गए, लेकिन एक भी मुस्लिम ने इस जघन्य कृत्य के खिलाफ मुंह नहीं खोला।
गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के बोगी नंबर 7 में 59 निहत्थे और निर्दोष कारसेवकों को जिंदा जलाकर मार दिया गया। इस अमानवीय हत्याकांड पर आजतक किसी ने नहीं कहा कि यह गलत हुआ और हम इस घटना से शर्मिंदित हैं। इसके विपरीत गोधरा हिंसा पर देश-विदेश में झूठी खबरें परोसी गईं, जिससे देश के खिलाफ माहौल बना। आज भी कई तथाकथित पत्रकार एक एजेंडा के तहत इस तरह के दुष्क्त्य में शामिल हैं और विदेशों से फंडिंग पाने के साथ-साथ कई अवॉर्ड्स भी पा चुके हैं।
बदायूं में दो बच्चों की नृशंस हत्या करने वाले की किसी ने निंदा नहीं की। यह पहली बार नहीं है। इससे पहले भी इन सबने विश्वासघात किया है। धर्म के नाम पर इन सबमें इतना जहर भरा हुआ है कि पूछिए मत। स्वामी श्रद्धानंद की हत्या से लेकर आजतक यह सिलसिला चल ही रहा है।
धर्म बदलकर लोगों की आस्था के साथ विश्वासघात, लव जिहाद से लेकर आतंकी घटनाओं की एक लंबी सूची है।
महाराष्ट्र में आतंकी घटना को अंजाम देने वाला कसाब और उसके साथ पाकिस्तान से आए सभी आतंकियों ने हाथ में कलावा बांधा था और हिंदू नाम रखे थे। वो तो भला हो महाराष्ट्र पुलिस के सिपाही हुतात्मा तुकाराम का, जिन्होंने जान पर खेलकर आतंकी कसाब को जिंदा पकड़ लिया, अन्यथा कांग्रेस के नेता और तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों ने इसे संघ की साजिश और हिंदू आतंकवाद की संज्ञा देने की ठान रखी थी।
छोटे-छोटे बच्चों के साथ बलात्कार को अंजाम देने वाले ऐसे लोग मानसिक रोगियों का भी बचाव करते पाए जाते हैं।
2020 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दो दिवसीय दौरे को देखते हुए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध के नाम पर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सुनियोजित तरीके से दंगों को अंजाम दिया था। इसमें देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) और जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी से पढ़े लोग शामिल थे। इसके अलावा दिल्ली में सत्तारूढ़ दल आम आदमी पार्टी का पार्षद ताहिर हुसैन व कांग्रेस के पूर्व विधायक व इसकी पार्षद बेटी भी शामिल रही थी।
कैसे इन सब पर भरोसा किया जाए। इन सबने भरोसा का कत्ल कर दिया है। पकड़े जाने के बाद ऐसे लोग विक्टिम कार्ड खेलना शुरू कर देते हैं। हैरानी व दुख इस बात का है कि छद्म सेक्युलरिज्म की लाइलाज बीमारी से ग्रसित तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग इस तरह के आतंकी सोच रखने वाले लोगों के साथ रहता है।
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