पीवी नरसिम्हाराव भारत के ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जिन्होंने नेहरू की आर्थिक नीतियों को पूरी तरह बदलकर देश को आर्थिक विकास के रास्ते पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विधि का विधान देखिए कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उम्र का हवाला देते हुए नरसिम्हा राव का टिकट काट दिया था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। चुनाव प्रचार के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में लिट्टे आतंकवादियों के आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या कर दी। राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई। हालांकि, कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। तब राजीव गांधी की हत्या के कारण दक्षिण भारत में बाद में हुए चुनाव में कांग्रेस को सहानुभूति लहर का लाभ मिला और कांग्रेस की सीटों में इजाफा हो गया। ऐसे विकट परिस्थिति में कांग्रेस की कमान कौन संभाले इस पर काफी मंथन हुआ। तब मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, पंजाब के राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री रहे अर्जुन सिंह, महाराष्ट्र से शरद पवार, उत्तर प्रदेश से एनडी तिवारी और बिहार से जगन्नाथ मिश्र का नाम सुर्खियों में आया, लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को उतनी सीट नहीं मिल सकी थी। इस कारण इन दोनों का दावा कमजोर हो गया। इसके बाद अर्जुन सिंह और शरद पवार के बीच नेता कौन का मसला था, कोई झुकने को तैयार नहीं। ऐसी परिस्थिति में राजनीति के बियाबान से झाड़-पोंछकर नरसिम्हा राव का नाम आगे किया गया। राव का तब हार्ट का मेजर ऑपरेशन हो चुका था। शरद पवार और अर्जुन सिंह का मानना था कि हार्ट के ऑपरेशन और ढलती उम्र के कारण अगले छह महीने में राव दुनिया से चल बसेंगे, इसके बाद कांग्रेस के नए नेता का चयन किया जाएगा, लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था।
राव ने प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहले कांग्रेस के अल्पसंख्या को बहुमत में तब्दील किया। इसके लिए उन पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों के खरीद-फरोख्त का भी आरोप लगा। कांग्रेस के बहुमत में आने के साथ ही राव ने सोनिया गांधी को पूरी तरह से इग्नोर करना शुरू कर दिया। दोनों के बीच तलवारें खींच गईं, लेकिन राजनीति के हर खेल में माहिर राव ने नेहरू परिवार से अलग होकर पूरे पांच साल (1991-1996) तक सत्ता चलाई। इसका नतीजा यह हुआ कि मृत्यु के बाद राव के अंतिम दर्शन के लिए कांग्रेस मुख्यालय का गेट नहीं खोला गया। सोनिया गांधी के तत्कालीन राजनीतिक सलाहकार रहे अहमद पटेल ने कह दिया कि चाबी गुम हो गई है।
राव के मृत शरीर को कुत्ते नोचने लगे थे। सोनिया के इशारे पर दिल्ली में अंतिम संस्कार के लिए जमीन तक नहीं दी गई। तब थक-हार कर आंध्र प्रदेश में राव का अंतिम संस्कार किया गया। इतना ही नहीं, जिस मनमोहन सिंह को राव ने अपना वित्त मंत्री बनाया था, वो सोनिया गांधी के डर से श्रद्धांजलि व्यक्ति करने तक नहीं गए।
मनमोहन सिंह भले ही कितने पढ़े-लिखें हों, लेकिन चाटुकारिता की जो परिभाषा उन्होंने तय की, उससे नीचे कोई नहीं गिर सकता है। रिमोट कंट्रोल से संचालित होने वाले वे विश्व के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जो अपनी इच्छा से एक चपरासी तक की नियुक्ति नहीं कर सके।
सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी के इशारों पर हमेशा एक पैर पर खड़े रहे। आज भी इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। सोनिया गांधी अनौपचारिक तौर पर सुपर पीएम के तौर पर कार्यरत रहीं। उस दौर में कोई भी विदेशी राजनीतिज्ञ सोनिया गांधी से मिले बिना नहीं जाता था, सबको सत्ता का मुख्य केंद्र मालूम था।
कांग्रेस के मुख्यालय से लेकर किसी कार्यालय में आपको पीवी नरसिम्हा राव की फोटो नहीं मिलेगी। जिस कांग्रेस ने नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी को भारत रत्न सम्मान दिया, उसने कभी भी राव के नाम का जिक्र तक नहीं किया, सम्मान देना तो दूर की बात है।
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीवी नरसिम्हा राव के योगदान को याद करते हुए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया है। राव का सम्मान भारत की आर्थिक उदारीकरण की नीति का सम्मान है। राव का सम्मान कांग्रेस को नेहरू परिवार से अलग सोच रखने वालों का भी सम्मान है। भारत रत्न पीवी नरसिम्हा राव को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने पर हम सभी भारतवासियों को गर्व है।
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