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मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

यह सब फ़र्जी आंदोलन स्वत: ही नहीं घटते, इसके लिए महीनों की तैयारी लगी होती है

Lalit Sharma


वर्तमान दौर में देश में राष्ट्रद्रोही मुखौटे बदल-बदल कर सामने आ रहे हैं, चाहे वो जेएनयू गैंग के रूप में हो, अवॉर्ड वापसी गैंग के रूप में हो, पत्थरबाजों के रूप में हो या किसानों का चोला पहन कर जंतर मंतर पर नौटंकी करने वालों के रूप में हो। अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार देशद्रोही शक्तियों के लिए ढाल बन गया है।
अखबारों में हट्ठे-कट्ठे ब्रांडेड किसानों का मूत्र पीने वाला कारनामा जब मुख्य पृष्ठ पर आया तो इसने सबका ध्यान खींचा। एक-सी हरे कपड़े की लंगोटी एवं पगड़ी धारण किए किसान जंगत मंतर पर कभी नग्न हो रहे थे तो कभी गिनी पिग (सफ़ेद चूहे) मुंह में दबाए दिखाई दे रहे थे। अगली खबर आई कि किसानों नें सामुहिक रुप से मूत्र पिया एवं अगले दिन मल खाएंगे, यह घटना चौंकाने वाली थी।

इनके समर्थन में वही चामी वामी गिरोह दिखाई दिया। फ़ेसबुक पर भी जिसको बेल की… का पता नहीं वो भी सिर्फ़ विरोध करने के लिए इनके समर्थन में मोदी को कोसने लगा। यह सब फ़र्जी आंदोलन स्वत: ही नहीं घटते, इसके लिए महीनों की तैयारी लगी होती है। जब कोई चुनाव आता है तब यह गिरोह किसी न किसी रूप में सक्रिय हो जाता है, अब बारी थी दिल्ली के एमसीडी चुनाव की। 




जो मांगे राज्य सरकार पूरी कर सकती है या उसके माध्यम से केन्द्र तक आनी चाहिए, उसके लिए तमिलनाडू के तथाकथित किसान सीधे ही जंतर मंतर पर धरना देने पहुंच गए। जो दिन में मूत्र सेवन करते थे और उसके बाद मंहगी कम्पनी का मिनरल वाटर पीते थे, फाइवस्टार होटल का भोजन करते थे। इस तरह इनकी कलई धीरे-धीरे खुलती जा रही जा रही थी।
ऐसा नहीं है कि अकाल दूकाल के कारण देश में किसान परेशान नहीं है, या कर्ज से लदे होने के कारण किसानों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें नहीं आई, पर असली किसानों कभी इस तरह की मलमूत्र सेवन करने जैसे गिरी हुई हरकतें नहीं की। असली किसान अपनी गैरत को समझता है, क्योंकि वह अन्नदाता है। एक तरह से नौटकीबाज किसानों ने असली किसानों का अपमान करने की ही कोशिश की।
एक टीवी चैनल अपने कार्यक्रम में इन फ़र्जी किसानों द्वारा मुंह में सफ़ेद चूहे (गिनी पिगी) लिए हुए दिखा रहा था और कह रहा था कि ये चूहे किसान दिल्ली के रेलवे स्टेशनों से पकड़ कर लाए हैं। मैने तो कभी रेलवे स्टेशनों पर सफ़ेद चूहे घूमते हुए नहीं देखे। वहाँ तो खतरनाक और बड़े-बड़े काले चूहे दिखाई देते हैं, जिनको इनका बाप भी नहीं पकड़ सकता। सफ़ेद चूहे बाजार में बिकते हैं, जिन्हें लोग अपने घर में पालते हैं या अनुसंधान के लिए इनका उपयोग होता है। अब इस टीवी चैनल के पत्रकार को जब चूहों के बारे में इतनी जानकारी नहीं तो समझ लो हो गयी पत्रकारिता। समझ सब है, पर इन्हें तो स्टोरी फ़्रेब्रिकेट कर भ्रम फ़ैलाना है, तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं। 


कुछ पत्रकारों के इन किसानों की पता साजी की तो इनके फ़र्जीवाड़े की असलियत सामने आई, जो किसी एनजीओ के सदस्य है और डफ़ली वाले गैंग की सपोर्ट में डफ़ली बजा रहे हैं। जैसे ही एमसीडी के चुनाव संपन्न हुए यह डफ़ली गैंग अपना बोरिया-बिस्तर संभाल कर वापस अपने घर के लिए उड़ लिया। जिस किसान के पास पीने के लिए मिनरल वाटर, खाने के लिए अच्छे होटल का भोजन, दिल्ली तक आने जाने के लिए हवाई भाड़ा होगा, उसे इतनी फ़ुरसत नहीं कि वह जंतर मंतर पर नंगा होकर प्रदर्शन करेगा। सरकार को इन देशद्रोहियों के खिलाफ़ एक्शन लेना चाहिए… बाकी हो है सो हैइए है……
Lalit Sharma

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