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मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

एमसीडी चुनाव: केजरीवाल की रणनीति काम न आई, जनता ने एक स्वर से नकारा

#केजरीवाल


जीते तो जनता हमारे साथ है और हारे तो ईवीएम है ही।
चित भी मेरी-पट भी मेरी; अंटा मेरे बाप का'
यानी हर हाल में हमारा दावा ऊपर रहना चाहिए। भारत में तरह-तरह के नेता हुए हैं। इनमें से कई ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने वाकपटुता ही नहीं कार्यों से जनता का ध्यान खिंचने में कामयाबी पाई तो कई ऐसे हुए जो सिर्फ बात बनाना जानते हैं और इन्हीं की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अन्ना हजारे के शिष्य रहे अरविंद केजरीवाल ने भारतीय राजनीति की गंदगी को साफ करने की बजाए इसे और गंदा ही कर दिया। 
ये ऐसे पहले राजनेता हैं जो सिर्फ आरोप लगाना जानते हैं। आज तक एक भी आरोप को सिद्ध नहीं कर सके। जब कभी किसी ने पलटकर वार किया तो भाग खड़े हुए। 
इनसे देश की जनता को बड़ी उम्मीदें थी, लेकिन अतिमहत्वाकांक्षा और अपने वामपंथी सलाहकारों के कारण एमसीडी के कूड़ा से भी बदतर स्थिति में पहुंच चुके हैं।
कल दिल्ली महानगरपालिका का चुनाव परिणाम आने वाला है और ये पहले से ही रुदाली शुरू कर चुके हैं, ताकि अपने समर्थकों के बीच छवि को बनाए रखने में सफल रहें, लेकिन इन्हें मालूम होना चाहिए कि ये पूरी तरह से नंगे हो चुके हैं और इनके चेहरे से नकाब उतर चुका है।
भारत की राजनीति में दूध का धुला कोई भी शख्स नहीं है, लेकिन वो कम से कम ये दावा तो नहीं करता है कि हम साफ हैं और बाकी सारे गलत। समस्या की शुरुआत यहीं से होती है। कोई भी व्यक्ति करोड़ों रुपए खर्च करके समाज सेवा करने नहीं आता है. अगर वह उद्योगपति है तो इसकी आड़ में वह अपने धंधों को सुरक्षित करना चाहता है या उसका विस्तार करने में सरकारी नियम-कानूनों को ताक पर रख देता है। इस सच्चाई से सभी देशवासी परिचित हैं।
जब तक चुनाव लड़ने के लिए योग्यता का निर्धारण के साथ-साथ सरकार की ओर से खर्च नहीं दिया जाएगा तब तक इसमें दूर-दूर तक सुधार नहीं दिखता।

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