हरेश कुमार
पैसा एक हद तक ही आपकी समस्याओं का हल कर सकता है।
अपने आसपास कितनों को देखता हूं पति-पत्नी ही नहीं पूरा परिवार कमाने में जुटा है। किसी को किसी के लिए समय नहीं। बच्चे आया के भरोसे हैं. ऐसे में अगर कुछ गलत होता है तो दोष किसका। पैसा ही सबकुछ नहीं होता।
अपने आसपास कितनों को देखता हूं पति-पत्नी ही नहीं पूरा परिवार कमाने में जुटा है। किसी को किसी के लिए समय नहीं। बच्चे आया के भरोसे हैं. ऐसे में अगर कुछ गलत होता है तो दोष किसका। पैसा ही सबकुछ नहीं होता।
बहुत सारे बच्चों-बच्चियों को जानता हूं जो घर से निकलते तो स्कूल जाने के लिए हैं लेकिन स्कूल बस से रास्ते में उतरकर या स्कूल की क्लास बंक कर पार्क या किसी मॉल में घूमते रहते हैं। बड़े होते बच्चों की समस्याओं को जब पेरेंट्स समझने की कोशिश नहीं करते हैं तो ऐसी ही स्थिति में बच्चे गलत रास्ते पकड़ लेते हैं।ऐसी स्थिति में एग्जाम के समय इन पर दोहरी जिम्मेदारी आती है और वो उसे पूरा नहीं कर पाते हैं. कई बच्चे फेल होने के डर से आत्महत्या तक कर लेते हैं। पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ थोड़ी देर ही सही बैठने और उनकी समस्याओं को सुनने की जरूरत है।
पहले संयुक्त परिवार हुआ करता था और बड़े-बुजुर्गों के परिवार में होने व उनकी बात चलने के कारण सभी की बातें सुनी जाती थी. अब एकल परिवार के आने और खर्चे बढ़ जाने के कारण पति-पत्नी दोनों ही आर्थिक तौर पर मजबूत होना चाहते हैं। इसमें कुछ भी बुराई नहीं, लेकिन हमें अपने बच्चों को भी समय देना चाहिए।
आज के समय में बढ़ते खर्चों को देखते हुए पति-पत्नी दोनों का कमाना बुरा नहीं, लेकिन ये भी देखना चाहिए कि अपने बच्चों को वो कितना समय दे पाते हैं।
आया और नौकर उनकी समस्याओं को सुलझा नहीं पाते, हां उनका शारीरिक, मानसिक और आर्थिक दोहन जरूर करते हैं। आप अगर अपने आसपास देखेंगे तो पाएंगे की बहुत तेजी से ऐसी परिस्थितियां बन रही हैं जहां बच्चे गलत रास्ते पर जा चुके होते हैं और उनके राज को माता-पिता से न बताने की कीमत आया व नौकर लंबे समय तक वसूलते हैं और एक समय ऐसा आता है जब सब कुछ खत्म हो चुका होता है तो पेरेंट्स को होश आता है कि पैसे कमाने के चक्कर में हमने ये क्या कर लिया।





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