मुझे न अजान से दिक्कत है और न ही किसी भजन या आरती से, बस एक सीमा के भीतर सब रहे तो सुंदर लगता है।
-दिक्कत तो तब आती है जब रात को आप सोने जाओ तो जिन लाउडस्पीकरों से अजान की आवाज आती थी उनसे इजरायल को खत्म करने की तहरीर रातभर बिना नागा किया जाता है।
- पहले जिन मस्जिदों पर एक-दो लाउडस्पीकर होते थे अब गिनती करेंगे तो आपको कम से कम चार और अधिक की संख्या तो दर्जनों में मिलेगी। इसपर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
-गर्मी के दिनों में छत पर सोने जाऊं तो एक मिनट के लिए भी ये शांत नहीं होते हैं। धार्मिक क्रिया-कलाप हो तो किसी को एतराज नहीं, लेकिन जिस देश से आपको कोई लेना-देना नहीं उसके कात्मे की बात आप दिल्ली-एनसीआर में कर रहे हैं। आपका उद्देश्य क्या है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं?
- ऐसा नहीं है कि माता के भजनों या समय-समय पर पूजा या किसी अन्य जोर-जोर से लाउडस्पीकर बजाने से दूसरों को दिक्कत नहीं होती, लेकिन लोग समझते हैं कि ये रोज तो नहीं बजते औऱ जाकर बोलो तो एकाध अपवादों को छोड़ दें तो सब आपकी बातें सुनते हैं और सुननी भी चाहिए।
-कोई बीमार हो या घर में बच्चा या बुजुर्ग हो या न भी हो तो एक समय के बाद सबको सोना है ताकि सुबह जल्दी उठे और अपनी ड्यूटी या जहां कहीं भी जाना है समय से पहुंचे।
-अगर आपकी नींद पूरी नहीं होती है तो दिनभर आप सही से काम नहीं कर पाएंगे। मन चिड़चिड़ा-सा लगता है।
-ऐसे में सामने वाले की बात नहीं सुहाती, चाहे कितनी भी अच्छी बातें क्यों न हो?
-कई बार ऐसा होता है कि एग्जाम का समय है और बच्चों की पढ़ाई में बाधा आती है, वो चाहे भजन हो या ऑर्केस्ट्रा उन्हें अपनी पढ़ाई से मतलब है नहीं तो उनके मुंह से गाली ही निकलती है।
मेरा यही मानना है कि हम सभी समाज में मिलजुल कर रहें और एक-दूसरे की समस्याओं को समझें और अगर हल नहीं कर सकते किसी की समस्या तो कम से कम उसके लिए समस्या तो खड़ी न करें या समस्या का कारण तो न बनें।
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