आप दिल्ली-एनसीआर या किसी भी राज्य के किसी भी क्षेत्र में चले जाओ और किसी प्राइवेट स्कूल-हॉस्पिटल व कॉलेज के बारे में पूछो उसका प्रबंधन किसी न किसी नेता या उसके परिवार से ही जुड़ा होगा।
-ब्लैक मनी और भ्रष्टाचार या सीधे तौर पर कहें तो रिश्वतखोरी से हुई कमाई का निवेश स्कूल, कॉलेज व अस्पताल में करने से दोहरा लाभ मिलता है। एक तो पैसे का सही और सुरक्षित निवेश हो जाता है, तो दूसरा क्षेत्र में जनता के बीच पकड़ बनाने में मदद मिलती है।
- ऐसा देखने में आता है कि कई बार उद्योगपति या व्यावसायी पैसे लगाते हैं और सरकारी झंझटों ने मुक्ति के लिए इन नेताओं या इनके परिवारजनों को 50 प्रतिशत की पार्टनरशिप दे देते हैं, ताकि समय रहते सारी औपचारिकताएं पूरी की जा सके और किसी तरह का प्रशासनिक दबाव न हो एडमिशन के समय या क्षेत्र से कोई अपराधी उलूल-जुलूल मांग न करे।
-सरकारी संस्थानों की दुर्दशा के पीछे यह एक बड़ी सच्चाई है। सरकारी संस्थान सही होंगे तो इन कुकुरमुत्तों को कौन पूछेगा। इसलिए सबसे पहले सरकारी संस्थानों को इन सबने मिलकर बर्बाद कर दिया। सरकारी संस्थान खड़े तो हैं, लेकिन किसी काम के नहीं।
-आप सीधे शब्दों में कहें तो ये सफदे हाथी हो चुके हैं जिसमें कर्मचारी नियुक्त होना चाहता है, लेकिन अपने बच्चों को उन संस्थानों में डालना नहीं चाहता। भारत के लोगों की यह सबसे बड़ी सच्चाई है। नौकरी सरकारी, लेकिन स्कूल-अस्पताल निजी होने चाहिए, ताकि संक्रमण न हो बच्चों को। जब तक इस तरह की सोच रहेगी कोई कुछ नहीं करने वाला. एक जाएगा उसकी जगह दूसरा आएगा।
-उच्च शिक्षा के लिए फिर भागे-भागे ये लोग दिल्ली यूनिवर्सिटी. जेएनयू यूनिवर्सिटी, आईईटी, एम्स या ऐसे ही किसी संस्थान में जाते हैं। प्राइवेट संस्थानों में मजबूरी में ही जाते हैं, जब इन संस्थानों में एडमिशन न मिले
-ब्लैक मनी और भ्रष्टाचार या सीधे तौर पर कहें तो रिश्वतखोरी से हुई कमाई का निवेश स्कूल, कॉलेज व अस्पताल में करने से दोहरा लाभ मिलता है। एक तो पैसे का सही और सुरक्षित निवेश हो जाता है, तो दूसरा क्षेत्र में जनता के बीच पकड़ बनाने में मदद मिलती है।
- ऐसा देखने में आता है कि कई बार उद्योगपति या व्यावसायी पैसे लगाते हैं और सरकारी झंझटों ने मुक्ति के लिए इन नेताओं या इनके परिवारजनों को 50 प्रतिशत की पार्टनरशिप दे देते हैं, ताकि समय रहते सारी औपचारिकताएं पूरी की जा सके और किसी तरह का प्रशासनिक दबाव न हो एडमिशन के समय या क्षेत्र से कोई अपराधी उलूल-जुलूल मांग न करे।
-सरकारी संस्थानों की दुर्दशा के पीछे यह एक बड़ी सच्चाई है। सरकारी संस्थान सही होंगे तो इन कुकुरमुत्तों को कौन पूछेगा। इसलिए सबसे पहले सरकारी संस्थानों को इन सबने मिलकर बर्बाद कर दिया। सरकारी संस्थान खड़े तो हैं, लेकिन किसी काम के नहीं।
-आप सीधे शब्दों में कहें तो ये सफदे हाथी हो चुके हैं जिसमें कर्मचारी नियुक्त होना चाहता है, लेकिन अपने बच्चों को उन संस्थानों में डालना नहीं चाहता। भारत के लोगों की यह सबसे बड़ी सच्चाई है। नौकरी सरकारी, लेकिन स्कूल-अस्पताल निजी होने चाहिए, ताकि संक्रमण न हो बच्चों को। जब तक इस तरह की सोच रहेगी कोई कुछ नहीं करने वाला. एक जाएगा उसकी जगह दूसरा आएगा।
-उच्च शिक्षा के लिए फिर भागे-भागे ये लोग दिल्ली यूनिवर्सिटी. जेएनयू यूनिवर्सिटी, आईईटी, एम्स या ऐसे ही किसी संस्थान में जाते हैं। प्राइवेट संस्थानों में मजबूरी में ही जाते हैं, जब इन संस्थानों में एडमिशन न मिले
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