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बुधवार, 19 अप्रैल 2017

सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को बर्बाद करने के पीछे नेता, प्रशासनिक अधिकारी और अपराधियों का गठजोड़

हरेश कुमार
सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को बर्बाद करने के पीछे नेता, प्रशासनिक अधिकारी और अपराधियों का गठजोड़ शामिल रहा है। इस हकीकत को देश के सभी लोग जानते हैं और यही कारण है कि सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए चला हर आंदोलन विफल हो जाता है, क्योंकि कोई भी नेता  इसे सही स्थिति में कार्य करना चाहता ही नहीं, वरना उसके अपने बिजनेस हितों पर असर पड़ेगा। बात बनाना और कार्य करना दोनों अलग-अलग बातें होती हैं और इस देश के साथ यही होता आ रहा है।
-अंधों के शहर में चश्मा बेचने की कीमत चुकानी पड़ी है कइयों को।
ऐसा लगता है कि जैसे भ्रष्ट व्यवस्था को सभी ने अंगीकार कर लिया है
-1980 के दशक में जो सरकारी स्कूल व अस्पताल बेहतर ढंग से संचालित हो रहे थे आज उनकी स्थिति पर रोने वाला कोई नहीं।
-सरकारी संस्थानों को बर्बाद करने के पीछे हमारे नेताओं का सबसे बड़ा योगदान रहा है।
-घूस और भ्रष्टाचार की काली कमाई को इन सबने स्कूल और अस्पतालों में निवेश किया।
-इससे इन्हें सामाजिक मान्यता मिलने के साथ ही पैसे का सुरक्षित निवेश का रास्ता भी मिला। सामाजिक हैसियत में बढ़ोत्तरी तो हुई है।
नतीजा आप देख सकते हैं।
-सरकारी स्कूल और अस्पताल में आज के दिन में वही जाते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं।
-वहां जिस तरह की भीड़ देखी जाती है और जिस तरह लोगों के साथ व्यवहार किया जाता है वह किसी की आंखें खोल देने के लिए काफी है।
-लेकिन अंधों के शहर में आप चश्मा बेचने निकले हैं तो सतर्क हो जाएं। ऐसा ही प्रयास कुछ लोगों ने किया था और नतीजा जान से हाथ धोना पड़ा। 
-इसके बावजूद लोग अपने-अपने स्तर पर इस गठजोड़ के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं और कई जगहों पर सफलता भी मिली है, लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि यह सफलता कितने दिनों तक बरकरार रहती है।
-नेता, प्रशासनिक अधिकारी और अपराधियों का गठजोड़ इस पूरे नेटवर्क से जुड़ा है और देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
- प्राइवेट स्कूलों और अस्पतालों में शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर सिर्फ लूट-खसोट मची है और विरोध करने वालों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती।
-आपके पास कोई उपाय नहीं या तो आप इनसे समझौता कर लो या फिर मिटने के लिए तैयार रहो।
-क्योंकि हर कोई इस नेटवर्क से जुड़ा है और अपना हित साध रहा है।
-प्रजातंत्र में आम आदमी के नाम पर सिर्फ राजनीति हो रही है और कुछ नहीं।
- किसी भी दल या नेता या किसी संस्था से कोई उम्मीद नहीं।

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