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रविवार, 26 मार्च 2017

हिंदी सिनेमा में पंडित को धूर्त, ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कॉमेडियन ही क्यों दिखाया जाता है?



सलीम - जावेद की जोड़ी की लिखी हुई फिल्मों को देखे, तो उसमें आपको अक्सर बहुत ही चालाकी से हिन्दू धर्म का मजाक तथा मुस्लिम / इसाई / साईं बाबा को महान दिखाया जाता मिलेगा। इनकी लगभग हर फिल्म में एक महान मुस्लिम चरित्र अवश्य होता है और हिन्दू मंदिर का मजाक तथा संत के रूप में पाखंडी ठग देखने को मिलते है।

फिल्म "शोले" में धर्मेन्द्र भगवान् शिव की आड़ लेकर "हेमा मालिनी" को प्रेमजाल में फंसाना चाहता है जो यह साबित करता है कि मंदिर में लोग लडकियां छेड़ने जाते है। 
इसी फिल्म में ए. के. हंगल इतना पक्का नमाजी है कि बेटे की लाश को छोड़कर, यह कहकर नमाज पढने चल देता है कि उसे और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान होने के लिए।

"दीवार" का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो बिल्ला भी बार बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है।
 "जंजीर" में भी अमिताभ नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है लेकिन शेरखान एक सच्चा इंसान है।
फिल्म 'शान" में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर साधु के वेश में जनता को ठगते है लेकिन इसी फिल्म में "अब्दुल" जैसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे देता है। फिल्म "क्रान्ति" में माता का भजन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार) गद्दार है और करीमखान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त, जो देश के लिए अपनी जान दे देता है।

अमर-अकबर-एंथोनी में तीनों बच्चों का बाप किशनलाल एक खूनी स्मगलर है, लेकिन उनके बच्चों अकबर और एंथोनी को पालने वाले मुस्लिम और इसाई महान इंसान है। साईं बाबा का महिमामंडन भी इसी फिल्म के बाद शुरू हुआ था। फिल्म "हाथ की सफाई" में चोरी - ठगी को महिमामंडित करने वाली प्रार्थना भी आपको याद ही होगी।

कुल मिलाकर आपको इनकी फिल्म में हिन्दू नास्तिक मिलेगा या धर्म का उपहास करता हुआ कोई कारनामा दिखेगा और इसके साथ-साथ आपको शेरखान पठान, DSP डिसूजा, अब्दुल, पादरी, माइकल, डेबिड, आदि जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे।

हो सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो, लेकिन अबकी बार ज़रा ध्यान से देखना।
केवल सलीम / जावेद की ही नहीं, बल्कि कादर खान, कैफ़ी आजमी, महेश भट्ट, आदि की फिल्मों का भी यही हाल है। फिल्म इंडस्ट्री पर दाऊद जैसों का नियंत्रण रहा है। इसमें अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है और पंडित को धूर्त, ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कॉमेडियन आदि ही दिखाया जाता है।

"फरहान अख्तर" की फिल्म "भाग मिल्खा भाग" में "हवन करेंगे" का आखिर क्या मतलब था? pk में भगवान का रॉन्ग नंबर बताने वाले आमिर खान क्या कभी अल्ला के रॉन्ग नंबर पर भी कोई फिल्म बनायेंगे? मेरा मानना है कि - यह सब महज इत्तेफाक नहीं है, बल्कि सोची-समझी साजिश है.👌👌!!
Rajendra Kumar के फेसबुक वॉल से साभार

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