हरेश कुमार
आज भले ही Indian National Congress के नेता राहुल गांधी की असफलता के कारण उन्हें कोस रहे हों, लेकिन बगैर गांधी-नेहरू परिवार के ये दो कदम भी एक साथ नहीं चल सकते। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी.नरसिम्हा राव को कैसे सत्ता मिली ये सभी को मालूम था। नरसिम्हा राव को राजीव गांधी ने टिकट तक से मरहूम कर दिया था।
किस्मत देखिए कि उनकी हत्या के बाद नरसिम्हा राव न सिर्फ गद्दी पर बैठे, बल्कि जवाहरलाल नेहरू की आर्थिक नीतियों को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। नरसिम्हा राव को नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह और शरद पवार की त्रिमूर्ति ने 6 महीने की अवधि के लिए इस पद पर बिठाया था। इनका मानना था कि एक तो उम्र और ऊपर से हार्ट का ऑपरेशन झेल चुके नरसिम्हा राव ज्यादा समय तक नहीं रह पाएंगे और तब फिर इनमें से कोई एक पीएम की कुर्सी पर बैठ जाएगा, लेकिन हाय री किस्मत। बातें तो बहुत है। हरि अनंत, हरि कथा अनंता की तरह..........।
कैसे-कैसे सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष बने और प्रधानमंत्री की चाहत लिए नारायण दत्त तिवारी, जगन्नाथ मिश्रा, अर्जुन सिंह, माधव राव सिंधिया, शरद पवार जैसे लोग पार्टी को अपने अनुसार, हांकते रहे। यह सभी को मालूम है।
अंत में फिर से ये सभी उसी गांधी परिवार के पास पहुंचते हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी ने ऐसी व्यवस्था लागू कर दी थी जिसके तहत किसी भी ऐसे राजनेता को आगे बढ़ने नहीं दिया जो इस परिवार के प्रति थोड़ी भी दिक्कत पैदा कर सकते थे।
इतिहास गवाह है- चाहे नेताजी सुभाषचंद्र बोस हों या लालबहादुर शास्त्री या कोई और। इस परिवार ने किसी को भी चुनौती नहीं बनने दिया। न सुभाषचंद्र बोस और न ही लालबहादुर शास्त्री की मौत प्राकृतिक तरीसे से हुई है। सुभाषचंद्र बोस की मौत के बारे में आज तक गलत बताया जाता रहा है। जबकि ताइवान की सरकार का कहना है कि उस दिन कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी।
तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकंद में पाकिस्तान के साथ समझौते के बाद अचानक से लाबहादुर शास्त्री की मौत हो जाती है। इसे हार्ट अटैक का नाम दिया जाता है, जबकि उनके चिकित्सक का कहना था कि शास्त्री जी का शरीर पूला पड़ चुका था। एक रोड एक्सीडेंट में उनके निजी चिकित्सक की भी मौत हो जाती है, क्योंकि डर था कि कहीं ये राज न खोल दे।
जो जैसा करता है, ठीक वैसा ही पाता है और आज गांधी परिवार इसे भुगत रहा है।
आरक्षण आंदोलन के बाद से बिहार और यूपी में यह पहले से कमजोर हो गई थी वरना अगर बिहार या यूपी में कांग्रेस जीती होती तो तिवारी या जगन्नाथ मिश्रा पीएम होते। जगन्नाथ मिश्रा के भाई तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की समस्तीपुर में बम मारकर हत्या कराई गई थी और 39 साल बाद सीबीआई आनंद मार्गियों पर इसका दोष मढ़ देती है जो किसी के गले नहीं उतरता।
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