हरेश कुमार
अरविंद केजरीवाल को नवजोत सिंह सिद्धू की आह लग जाएगी। बेचारे को राज्यसभा से इस्तीफा दिलवा दिया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी का सीएम कैंडिडेट बनाएंगे और हाथ में थमा दिया लड्डू। नवजोत सिंह सिद्धू के साथ केजरीवाल ने जैसा किया इसका उदाहरण आपको पूरे राजनीतिक इतिहास में नहीं मिलेगा। केजरीवाल के पास कोई विजन नहीं, यह पूरी तरह से रंगा सियार है इसकी कलई खुल चुकी है। दो साल से अधिक समय हो चुके हैं दिल्ली की गद्दी पर बैठे हुए और एक भी राजनीतिक वादे पूरे न कर सके।
अपनी कमियों का रोना दूसरों पर आरोप लगाकर करने से समस्या का हल नहीं निकलता, सारे लोग आपको देख रहे हैं। मुफ्त वाई-फाई, सीसीटीवी कैमरा, बसों में महिलाओं की सुरक्षा, नए स्कूल-कॉलेज की स्थापना, अस्पतालों की बेहतर स्थिति के साथ भ्रष्टाचार औरं भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करना एक भी ऐसा काम ये बता दें जिस पर अमल किया है। दिल्ली की जनता जनलोकपाल की राह देख रही है अब तक।
फर्जी डिग्रीधारियों और भ्रष्टाचारियों को मंत्रिमंडल में शामिल करना और अंत तक बचाव करना कोई आपसे सीखे, जबकि आपने सभी विधायकों की सख्त जांच का भरोसा दिया था। आपकी किस बात पर भरोसा करें हम। शीला दीक्षित के खिलाफ कॉमनवेल्थ गेम में हुए भ्रष्टाचार के 370 पेज सबूत या लोकसभा चुनाव में भारी हार के बाद फिर से दिल्ली की जनता के आगे रोना।
अपनी कमियों का रोना दूसरों पर आरोप लगाकर करने से समस्या का हल नहीं निकलता, सारे लोग आपको देख रहे हैं। मुफ्त वाई-फाई, सीसीटीवी कैमरा, बसों में महिलाओं की सुरक्षा, नए स्कूल-कॉलेज की स्थापना, अस्पतालों की बेहतर स्थिति के साथ भ्रष्टाचार औरं भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करना एक भी ऐसा काम ये बता दें जिस पर अमल किया है। दिल्ली की जनता जनलोकपाल की राह देख रही है अब तक।
फर्जी डिग्रीधारियों और भ्रष्टाचारियों को मंत्रिमंडल में शामिल करना और अंत तक बचाव करना कोई आपसे सीखे, जबकि आपने सभी विधायकों की सख्त जांच का भरोसा दिया था। आपकी किस बात पर भरोसा करें हम। शीला दीक्षित के खिलाफ कॉमनवेल्थ गेम में हुए भ्रष्टाचार के 370 पेज सबूत या लोकसभा चुनाव में भारी हार के बाद फिर से दिल्ली की जनता के आगे रोना।
पंजाब विधानसभा के परिणाम आने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने राहत की सांस ली होगी। कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में वे उप-मुख्यमंत्री की हैसियत में होंगे। अच्छा हुआ जो समय रहते वो केजरीवाल के जाल से निकल गए।
केजरीवाल की राजनीति का आलम तो यह है कि दिल्ली में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों में उनके द्वारा समर्थित पंथक कमेटी का खाता भी नहीं खुला। उसी दिन इन्हें समझ लेनी चाहिए थी की जनता ने अपना मत प्रकट कर दिया है।
केजरीवाल और इनकी पार्टी एक समय पंजाब के लोगों की पहली पसंद थी, लेकिन जिस तरह से इन्होंने स्थानीय उम्मीदवारों की अनदेखी की और सत्ता के नशे में एक-एक करके सभी को बेइज्जत किया वह इन्हें भारी पड़ गया। सत्ता के लिए खालिस्तानी आतंकियों का साथ लेने से भी इन्हें कोई परहेज नहीं था। सिखों के धार्मिक ग्रंथ गुरुग्रंथ साहब की बेअदबी करने में भी इसने संकोच नहीं किया। इसकी पार्टी का विधायक इस मामले में आरोपित है।
सिद्धू साहब को सोचना चाहिए था कि ये वही केजरीवाल हैं जिनके पास दिल्ली में चुनाव से पहले शीला दीक्षित के खिलाफ कॉमनवेल्थ गेम में भ्रष्टाचार करने का 370 पेज का सबूत था और पहली बार कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाते ही गिरगिट की तरह पैंतरा बदलने में एक पल की देरी नहीं की। जब इनसे दिल्ली विधानसभा में शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार के लिए केस करने की बात पूछी गई तो महाशय का जवाब था- आप सबूत लाओ हम केस करते हैं। कुछ दिनों के बाद जनाब दिल्ली की गद्दी को त्यागकर लोकसभा के चुनाव में बनारस पहुंच गए और वहां कम्युनिस्टों ने इनका दिल खोलकर स्वागत किया, लेकिन इन्हें मालूम नहीं था कि देश की जनता पहले ही मूड बना चुकी है।
इन सबके बावजूद दिल्ली की जनता ने इन्हें 67-3 से दोबारा गद्दी सौंपी थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र इनके झांसें में नहीं आए और वहां केजरीवाल के उम्मीदवारों को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। ये स्थिति तब थी जब उम्मीदवारों ने केजरीवाल के फोटो का इस्तेमाल किया था।
लेकिन आदतन लाचार इस व्यक्ति ने दिल्ली में शराब कारोबारियों के हाथों खेलते रहने के बावजूद पंजाब में नशे के कारोबार और युवाओं की बर्बादी पर अपना सारा ध्यान लगा रखा है। इनके लिए नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है। हद तो तब हो गई कि एक नशेड़ी Bhagwant Mann को आगे करके पंजाब को नशामुक्ति का संदेश देने चले थे हुजूर।
सत्ता में आने की ऐसी बेचैनी की खालिस्तानी आतंकियों से भी हाथ मिलाने से नहीं चूके। वाम बुद्धिजीवियों और 24 घंटे आगे-पीछे करने वाले दलालों के विचारों को ही जनता का विचार समझने की भूल आने वाले समय में इन्हें बहुत भारी पड़ने वाली है। ये न घर के रहेंगे औऱ न ही घाट के। दिल्ली की जनता ने इन्हें बहुत अरमानों से प्रंचड बहुमत से गद्दी सौंपी थी।
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