बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा परीक्षा से पहले पर्चों का वॉट्सऐप पर आना एक बहुत बड़े घोटाला का संकेत दे रहा है। अगर इसकी जांच सही से की जाए तो यह दूसरा व्यापमं (मध्य प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल घोटाला) साबित होगा। हालांकि, इस घोटाले में शामिल नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों तक जांच की आंच पहुंच सकेगी इसमें संदेह है और इस संदेह के पीछे ठोस कारण हैं। इस देश में चाहे कोई भी दल या नेता सत्ता में हो अपने चहेते अधिकारियों और नेताओं को हमेशा संरक्षण देते रहे हैं और इस केस में भी अंत में यही सब आएगा। कुछ निचले तबके के अधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर जांच को यथासंभव लंबा खींचा जाएगा और अंत में लोग भूल जाएंगे कि इस तरह का कोई घोटाला हुआ था। आखिर, हम बाकी घोटालों को भी तो इसी तरह से भूलते आए हैं।
बिहार की राजनीति को करीब से जानने वाले सभी लोगों को पता है कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के द्वारा आयोजित परीक्षा में लालकेश्वर प्रसाद सिन्हा, उषा सिन्हा औऱ सरगना बच्चा सिंह ही आरोपी नहीं थे। कई नेता इसमें शामिल थे, लेकिन उनतक जांच पहुंचने से पहले ही बिहार सरकार ने इसे पूरा मान लिया, क्योंकि आरोपियों में उनके नजदीकियों के शामिल होने की बात खुलकर सामने आने लगी थी। यही बात एक बार फिर से बिहार कर्मचारी चयन आयोगी के पेपर लीक में सामने आई है।
बिहार कर्मचारी चयन आयोग के सचिव परमेश्वर राम ने 7 मंत्रियों सहित 29 विधायकों और 9 आईएएस का नाम लिया है। बिहार सरकार क्या दुनिया की कोई सरकार अपने लोगों पर कभी आंच नहीं आने देती। पिछले कई सालों से यह खेल खेला जा रहा था। इसमें रंजीत डॉन सहित कई अपराधियों के शामिल होने के पक्के सबूत हैं।
पिछले साल खबर आई थी कि एक रिटायर्ड ऑफिसर के घर पर बिहार में कई घोटालों का मास्टरमाइंड रहा रंजीत डॉन बिहार के कई नेताओं के साथ चाय-पकौड़े की पार्टी कर रहा था। इस पार्टी में शामिल रहा एक नेता नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में है। इस घोटाले के जांच एसआईटी को देने के पीछे मख्य मकसद अपने लोगों को बचाना है और कुछ नहीं। यह घोटाला मध्य प्रदेश में हुए घोटाले की तर्ज पर दूसरा व्यापमं है।
नालंदा और नवादा के एक जाति विशेष के कई लोग इस घोटाले में शामिल हैं और यही लोग नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाने का ख्वाब दिखाते रहे हैं।
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