पेज

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

जिंदगी अपने फैसलों से हमेशा ही चौंकाती है हमें

हरेश कुमार

और इस तरह 33 सामने से निकल गया

सेक्टर-62 (फोर्टिस हाॅस्पिटल) से 392 से सेक्टर 12-22 के मोड़ पर उतरा ही था कि 33 नंबर एसी बस आगे निकल गया। मैंने पीछे से आ रहे 319 नंबर (शाहदरा) को हाथ दिया और ड्राइवर से कहा कि आगे जा रही 33 नंबर भजनपुरा वाली गाड़ी को पकड़ना है। ड्राइवर भलामानुष था उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। सेक्टर 11 आते-आते दोनों गाडी आगे-पीछे थी। नोएडा मोड़ तक पकड लेता, लेकिन तभी बीच में टाटा मोटर्स की ओर से एक मार्शल गाड़ी की एंट्री होती है। ड्राइवर ने पी रखी थी। 33 नंबर हरी बत्ती होते ही आगे बढ गई। इससे निबट कर अभी आगे बढा ही था कि एक रिक्शेवाला सामने से आ गया। अगर 319 के ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक नहीं लिया होता तो कहानी वहीं पर एक नया मोड ले लेता। इस चक्कर में 33 और 319 की दूरी बढती चली गई। एक समय जो बिल्कुल पास में लग रही थी वो आंखों के सामने ओझल हो गई। अब फैसले पर पुनर्विचार की बारी मेरी थी। मेरे मन में एक साथ कई ऑप्शंस पर मंथन चल रहा था।
1: 319 नंबर से गाजीपुर तक जाऊं।
2: कल्याणपुरी मोड पर उतरकर पीछे से आ रही दूसरी 33 पकड़ूं या वो नहीं मिले तो 211 पकड़ के गाजीपुर उतरकर फिर 534 या बाहरी मुद्रिका से आनंद विहार और फिर वहां से भजनपुरा के लिए बाहरी मुद्रिका, यमुना मुद्रिका या 971 या 165 या 234या 212 पकड़ूं लूंगा।  
3: तब तक कोंडली मोड आ चुका था और मैं 319 के ड्राइवर को धन्यवाद देते हुए उतर गया।

अभी मुश्किल से 4 काम आगे बढा ही था कि मेरी नजर पीछे से आ रही 206 नंबर क्लस्टर बस पर पड़ी। यह मयूर विहार फेज से भजनपुरा चलती है, लेकिन मैं अन्य दिनों में इसे नजरअंदाज करता हूं। इसके पीछे दो मुख्य कारण है। गाजीपुर से यह सीलमपुर के रास्ते आती है। इस रास्ते पर आपको हमेशा ट्रैफिक जाम मिलना तय है और पाॅकिटमारों का यह प्रिय रूट है। 

ऐसा नहीं कि 33 नंबर का रूट सही है। प्रतिदिन आते-जाते सभी चेहरों को जानता हूं।

इन रूटों पर पाॅकिटमार बस के स्टार्ट होते अपने टारगेट पर नजर रखते है। आप टिकट कटाने और सीट के चक्कर में रहेंगे तब तक वो अपना काम बारीकी से कर जाते हैं। यहां बच गए तो डीएलएफ मोड़, सीमापुरी से लेकर आनंद विहार तक साफ। सबके इलाके बंटे हुए हैं। अब यहां से पाॅकिटमारों की दूसरी टोली सवार होती है यहां से चढ़ने वाली टीम कल्याणपुरी मोड़ तक अपना शिकार करती है। फिर वहां से तीसरी टोली कोंडली, दुल्लुपुरा और मयूर विहार -3मोड़ से आगे नोएडा मोड़ तक चलती है। इसमें वेल सूटेड युवा और औरतों के साथ बुर्काधारी महिलाएं-बच्चे भी होते हैं। प्रतिदिन आने-जाने वाले यात्रियों को सब पता है, लेकिन कोई हस्तक्षेप नहीं करता।

चलिए; मेरी यात्रा पूरी हुई और अब मैं अपने घर चला।शुभरात्रि।

दोस्तों यह जिंदगी भी कुछ इसी तरह है। कई बार पास आकर भी चीजें हाथ से निकल जाती है। ऐसा लगता है कि अब सफलता आपके कदम चूमने ही वाली है तभी कुछ ऐसा हो जाता है जिसकी आप आशा नहीं करते हैं। हम सभी को इसे पोजिटिव तरीके से लेना चाहिए।

जिंदगी कभी सीधी रेखा में नहीं चलती। यह हमेशा चौंकाती है अपने फैसलों से और हमारी परीक्षा लेती है। जो लोग इन बाधाओं को पार कर लेते हैं वो सफल होते हैं और बाकी इस रेस में पीछे होता जाते हैं। यही जिंदगी का फलसफा है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें