हरेश कुमार
राजनीति में अपराधी, बाहुबली व वोटों के ठेकेदार पहले नेताओं के लिए काम करते थे और बदले में नेताजी उसे राजनीतिक संरक्षण दिया करते थे।धीरे-धीरे इनका हौसला बढ़ता गया और एक समय ऐसा आया कि इन सबको लगा कि हमारे समर्थन के बगैर ये जीत नहीं सकते और कल तक पर्दे के पीछे रहकर वोटों का सौदा करने वाले लोग खुलकर मैदान में आ गए। हत्या, बलात्कार,पॉकिटमारी व अन्य अपराधों में शामिल लोग संसद व राज्यों के विधानसभा के माननीय सदस्य बन गए। इन लोगों ने कानून और प्रशासन की कमजोरियों का खूब लाभ उठाया और अपने खिलाफ लगे आरोपों में जमकर संदेह का लाभ उठाया।
इस खेल में स्थानीय प्रशासन ने इन सबकी खूब मदद की। सबूतों के साथ छेड़छाड़, गवाहों को संरक्षण देने की जगह उन्हें हर तरह से प्रताड़ित करना और अंत में इस कदर तोड़ देना कि या तो वो नेताजी के पक्ष में गवाही दे या ऐसा कुछ हो जाए कि उसकी गवाही को अदालत सबूत मानने से ही इनकार कर दे।
ऐसा नहीं है कि न्याय की कुर्सी पर बैठे जजों को यह सब मालूम नहीं, लेकिन कुछ तो है जो सच्चाई जानते हुए भी ये सब अपराधियों को बाइज्जत बरी करते रहे हैं।
इस देश में एक अपराध जीतकर जब संसद या विधानसभा का माननीय सदस्य बनता है, तो वह इतना शक्तिशाली बन जाता है कि कानून को अपने पक्ष में बदल डालता है।
1990 के दशक के बाद से संसद व विधानसभाओं में आपराधिक छवि के नेताओं की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। इनपर उंगली उठने के बाद नेताओं ने एक नया तरीका निकाला और कहा जाने लगा कि मामला कोर्ट में है और सिर्फ आरोप लग जाने से कोई अपराधी नहीं हो जाता, जबकि हकीकत सभी को पता था।
सभी दलों ने इसकी आड़ लेकर अपराधियों को खुलेआम राजनीतिक संरक्षण देना शुरू किया और आज यह इस निचले स्तर पर आ चुका है कि इस देश के लोग पाकिस्तान व अन्य देशों के लिए सैन्य जासूसी करने लगे। इसके पीछे एकमात्र कारण हमारे देश के नेताओं का गिरता हुआ नैतिक स्तर है। लोग देख रहे हैं कि हर तरह के अपराधों में शामिल होने के बावजूद जब ये नेता तमाम सुविधाएं भोग सकते हैं, तो हम क्यों नहीं और यही सोच इन्हें देश के खिलाफ भी काम करने से नहीं रोकता। पैसा और औरत के लिए ये लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं।
इस देश की आजादी के लिए करोड़ों लोगों ने अपनी जान कुर्बान की।भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी की आत्मा आज जार-जार रो रही होगी, क्या इसी के लिए इन सबने कुर्बानी दी थी।
देश को जाति-पाति, धर्म और संप्रदाय में बांटकर ये नेता अपने सात पुश्तों के लिए व्यवस्था कर चुके हैं।आम आदमी इनके फेंके हुए टुकड़ों पर अपनी जिंदगी काटने को विवश हो चुका है। उसके पास बहुत सीमित विकल्प रह गया है।
अगर समय रहते हर तरह के अपराधियों पर लगाम न कसी गई तो फिर वो दिन दूर नहीं जब देश के लोग इन सबके खिलाफ उठ खड़े होंगे फिर इन सबको धोती बचानी महंगी पड़ जाएगी।
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राजनीति में अपराधी, बाहुबली व वोटों के ठेकेदार पहले नेताओं के लिए काम करते थे और बदले में नेताजी उसे राजनीतिक संरक्षण दिया करते थे।धीरे-धीरे इनका हौसला बढ़ता गया और एक समय ऐसा आया कि इन सबको लगा कि हमारे समर्थन के बगैर ये जीत नहीं सकते और कल तक पर्दे के पीछे रहकर वोटों का सौदा करने वाले लोग खुलकर मैदान में आ गए। हत्या, बलात्कार,पॉकिटमारी व अन्य अपराधों में शामिल लोग संसद व राज्यों के विधानसभा के माननीय सदस्य बन गए। इन लोगों ने कानून और प्रशासन की कमजोरियों का खूब लाभ उठाया और अपने खिलाफ लगे आरोपों में जमकर संदेह का लाभ उठाया।
इस खेल में स्थानीय प्रशासन ने इन सबकी खूब मदद की। सबूतों के साथ छेड़छाड़, गवाहों को संरक्षण देने की जगह उन्हें हर तरह से प्रताड़ित करना और अंत में इस कदर तोड़ देना कि या तो वो नेताजी के पक्ष में गवाही दे या ऐसा कुछ हो जाए कि उसकी गवाही को अदालत सबूत मानने से ही इनकार कर दे।
ऐसा नहीं है कि न्याय की कुर्सी पर बैठे जजों को यह सब मालूम नहीं, लेकिन कुछ तो है जो सच्चाई जानते हुए भी ये सब अपराधियों को बाइज्जत बरी करते रहे हैं।
इस देश में एक अपराध जीतकर जब संसद या विधानसभा का माननीय सदस्य बनता है, तो वह इतना शक्तिशाली बन जाता है कि कानून को अपने पक्ष में बदल डालता है।
1990 के दशक के बाद से संसद व विधानसभाओं में आपराधिक छवि के नेताओं की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। इनपर उंगली उठने के बाद नेताओं ने एक नया तरीका निकाला और कहा जाने लगा कि मामला कोर्ट में है और सिर्फ आरोप लग जाने से कोई अपराधी नहीं हो जाता, जबकि हकीकत सभी को पता था।
सभी दलों ने इसकी आड़ लेकर अपराधियों को खुलेआम राजनीतिक संरक्षण देना शुरू किया और आज यह इस निचले स्तर पर आ चुका है कि इस देश के लोग पाकिस्तान व अन्य देशों के लिए सैन्य जासूसी करने लगे। इसके पीछे एकमात्र कारण हमारे देश के नेताओं का गिरता हुआ नैतिक स्तर है। लोग देख रहे हैं कि हर तरह के अपराधों में शामिल होने के बावजूद जब ये नेता तमाम सुविधाएं भोग सकते हैं, तो हम क्यों नहीं और यही सोच इन्हें देश के खिलाफ भी काम करने से नहीं रोकता। पैसा और औरत के लिए ये लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं।
इस देश की आजादी के लिए करोड़ों लोगों ने अपनी जान कुर्बान की।भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी की आत्मा आज जार-जार रो रही होगी, क्या इसी के लिए इन सबने कुर्बानी दी थी।
देश को जाति-पाति, धर्म और संप्रदाय में बांटकर ये नेता अपने सात पुश्तों के लिए व्यवस्था कर चुके हैं।आम आदमी इनके फेंके हुए टुकड़ों पर अपनी जिंदगी काटने को विवश हो चुका है। उसके पास बहुत सीमित विकल्प रह गया है।
अगर समय रहते हर तरह के अपराधियों पर लगाम न कसी गई तो फिर वो दिन दूर नहीं जब देश के लोग इन सबके खिलाफ उठ खड़े होंगे फिर इन सबको धोती बचानी महंगी पड़ जाएगी।
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