हरेश कुमार
दो कदम आगे चार कदम पीछे चलना नीतीश कुमार की राजनीतिक बाध्यता है
नीतीश कुमार के साथ सबसे बड़ी राजनीतिक दिक्कत यह है कि उन्हें उस लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर सरकार चलानी है जिसके जंगलराज और कुशासन का विरोध कर वो भारतीय जनता पार्टी की सरकार में केंद्र में कृषि मंत्री और फिर रेल मंत्री रहे। आगे चलकर अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद से वे बिहार में गठबंधन के नेता बने और लगातार दस साल बिहार में भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री रहे।
भाजपा और जेडीयू के बीच सबकुछ सही से चल रहा था, लेकिन तभी लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई और भाजपा से गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के कैंडिडेट बने। फिर क्या था नीतीश कुमार को उनके शुभचिंतकों ने यह बात समझा दी कि आप तत्काल प्रभाव से इस गठबंधन को लात मारकर बाहर आ जाओ इससे मुस्लिमों में अच्छा संदेश जाएगा और आप तीसरे गठबंधन के नेता बनकर उभर जाएंगे। फिर चुनाव बाद जोड़-तोड़ करके आप प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं।
पिछले 30सालों से किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था और एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल जैसे लोग पीएम बन चुके थे।
पश्चिम बंगाल के नेता कम्युनिस्ट ज्योति बसु के प्रधानमंत्री बनने की संभावना एक समय काफी प्रबल थी, लेकिन पोलित ब्यूरो से इजाजत न मिलने के कारण कम्युनिस्ट पार्टी और ज्योति बसु ने यह मौका गंवा दिया। ज्योति बसु को इसका मलाल हमेशा रहा और कई मौकों पर उन्होंने इसे स्वीकारा भी। खैर, यह भारतीय राजनीति की एक अलग कहानी है।
मैं बात कर रहा था नीतीश कुमार द्वारा एक ही झटके में 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ने के बारे में। नीतीश कुमार ने अपने टारगेट मतदाताओं को साधने के लिए न सिर्फ गठबंधन तोड़ा, बल्कि नरेंद्र मोदी के सम्मान में दिया जाने वाला रात्रिभोज भी रद्द कर दिया। नीतीश कुमार यहीं नहीं रुके उन्होंने और उनकी पार्टी ने गोधरा में हुए दंगों के लिए नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी पर लगातार हमलावर रुख अख्तियार कर लिया, जबकि वे गोधरा कांड के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार में रेलमंत्री थे और उन्होंने इस दौरान गुजरात का दौरा भी किया था।
इन सब प्रयासों के पीछे उनका उद्देश्य बिहार से लोकसभा की अधिक से अधिक सीट जीतना और फिर कांग्रेस व अन्य पार्टियों की सहायता से प्रधानमंत्री बनना था, लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के केंद्र में भ्रष्टाचार से तंग भारत की जनता ने इस बार परिवर्तन का मन बना लिया था। इस परिवर्तन को अमित शाह की टीम के एकजुट प्रयासों ने अपने पक्ष में भुनाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा। फलस्वरूप नीतीश कुमार की पार्टी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। जेडीयू 2सीटों पर सिमट कर रह गई।
राजनीतिक हकीकत को समझते हुए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लिया। लालू प्रसाद यादव को भी यह सौदा फायदे का लगा, क्योंकि लगातार दस साल से बिहार में उनकी पार्टी सत्ता से बाहर रहे और केंद्र में भी कांग्रेस के नहीं रहने व राष्ट्रीय जनता दल के जमीन खिसकते रहने से लालू प्रसाद यादव को अपने अप्रसांगिक होने का डर सताने लगा था।
बिहार विधानसभा चुनाव के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं द्वारा आरक्षण पर दिए गए बयानों ने आग में घी का काम किया।
राजद और जेडीयू ने मिलकर भले सरकार बना लिया और नीतीश कुमार की पार्टी से ज्यादा सीट होने के बाद भी मुख्यमंत्री पद पर दावा न ठोंककर लालू प्रसाद यादव ने बड़े भाई का दायित्व निभाया।बदले में लालू प्रसाद के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने और बड़े पुत्र तेजप्रताप यादव स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए। लेकिन राजनीति में भावनाओं का स्थाई महत्व नहीं होता और भविष्य में किसी तरह की स्थिति से निपटने के लिए विधानसभा अध्यक्ष का पद जेडीयू ने अपने पास रखा। कुछ दिनों तक सब ठीकठाक रहा, लेकिन जब लालू प्रसाद हावी होने की कोशिश करने लगे तो नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया।

वे इस बात को अच्छी तरह समझ चुके हैं कि नरेन्द्र मोदी केंद्र में स्थापित हो चुके हैं और राज्य में विकास गतिविधियों को पूरा करने के लिए केंद्र का सहयोग नितांत आवश्यक है। लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। नीतीश कुमार अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं और वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति उन्हें इस बात की इजाजत दे रही है। तभी वो कभी गुरु गोविंद सिंह के जन्मोत्सव के अवसर पर प्रधानमंत्री के साथ दिखते हैं तो कभी पटना पुस्तक मेला में कमल के फूल में भगवा रंग भरते हैं।
नीतीश कुमार आज नहीं तो कल वर्तमान गठबंधन से बाहर आएंगे यह ध्रुव सत्य है। लेकिन उन्हें कब पहले वाला महत्व नहीं मिलने वाला है। जब तक यह स्थिति चल रही है चलेगी। एक-दूसरे पर वार-पलटवार और तीसरे गठबंधन की संभावना भी तलाशी जाती रहेंगी, क्योंकि राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न ही स्थाई दुश्मन।
Nitish Kumar Lalu Prasad Yadav Narendra Modi PMO India PMO India : Report Card Amit Shah #BJP
#NitishKumar #LaluPrasadYadav #NarendraModi #Bihar #CM
दो कदम आगे चार कदम पीछे चलना नीतीश कुमार की राजनीतिक बाध्यता है
नीतीश कुमार के साथ सबसे बड़ी राजनीतिक दिक्कत यह है कि उन्हें उस लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर सरकार चलानी है जिसके जंगलराज और कुशासन का विरोध कर वो भारतीय जनता पार्टी की सरकार में केंद्र में कृषि मंत्री और फिर रेल मंत्री रहे। आगे चलकर अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद से वे बिहार में गठबंधन के नेता बने और लगातार दस साल बिहार में भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री रहे।
भाजपा और जेडीयू के बीच सबकुछ सही से चल रहा था, लेकिन तभी लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई और भाजपा से गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के कैंडिडेट बने। फिर क्या था नीतीश कुमार को उनके शुभचिंतकों ने यह बात समझा दी कि आप तत्काल प्रभाव से इस गठबंधन को लात मारकर बाहर आ जाओ इससे मुस्लिमों में अच्छा संदेश जाएगा और आप तीसरे गठबंधन के नेता बनकर उभर जाएंगे। फिर चुनाव बाद जोड़-तोड़ करके आप प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं।
पिछले 30सालों से किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था और एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल जैसे लोग पीएम बन चुके थे।
पश्चिम बंगाल के नेता कम्युनिस्ट ज्योति बसु के प्रधानमंत्री बनने की संभावना एक समय काफी प्रबल थी, लेकिन पोलित ब्यूरो से इजाजत न मिलने के कारण कम्युनिस्ट पार्टी और ज्योति बसु ने यह मौका गंवा दिया। ज्योति बसु को इसका मलाल हमेशा रहा और कई मौकों पर उन्होंने इसे स्वीकारा भी। खैर, यह भारतीय राजनीति की एक अलग कहानी है।
मैं बात कर रहा था नीतीश कुमार द्वारा एक ही झटके में 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ने के बारे में। नीतीश कुमार ने अपने टारगेट मतदाताओं को साधने के लिए न सिर्फ गठबंधन तोड़ा, बल्कि नरेंद्र मोदी के सम्मान में दिया जाने वाला रात्रिभोज भी रद्द कर दिया। नीतीश कुमार यहीं नहीं रुके उन्होंने और उनकी पार्टी ने गोधरा में हुए दंगों के लिए नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी पर लगातार हमलावर रुख अख्तियार कर लिया, जबकि वे गोधरा कांड के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार में रेलमंत्री थे और उन्होंने इस दौरान गुजरात का दौरा भी किया था।
इन सब प्रयासों के पीछे उनका उद्देश्य बिहार से लोकसभा की अधिक से अधिक सीट जीतना और फिर कांग्रेस व अन्य पार्टियों की सहायता से प्रधानमंत्री बनना था, लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के केंद्र में भ्रष्टाचार से तंग भारत की जनता ने इस बार परिवर्तन का मन बना लिया था। इस परिवर्तन को अमित शाह की टीम के एकजुट प्रयासों ने अपने पक्ष में भुनाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा। फलस्वरूप नीतीश कुमार की पार्टी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। जेडीयू 2सीटों पर सिमट कर रह गई।
राजनीतिक हकीकत को समझते हुए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लिया। लालू प्रसाद यादव को भी यह सौदा फायदे का लगा, क्योंकि लगातार दस साल से बिहार में उनकी पार्टी सत्ता से बाहर रहे और केंद्र में भी कांग्रेस के नहीं रहने व राष्ट्रीय जनता दल के जमीन खिसकते रहने से लालू प्रसाद यादव को अपने अप्रसांगिक होने का डर सताने लगा था।
बिहार विधानसभा चुनाव के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं द्वारा आरक्षण पर दिए गए बयानों ने आग में घी का काम किया।
राजद और जेडीयू ने मिलकर भले सरकार बना लिया और नीतीश कुमार की पार्टी से ज्यादा सीट होने के बाद भी मुख्यमंत्री पद पर दावा न ठोंककर लालू प्रसाद यादव ने बड़े भाई का दायित्व निभाया।बदले में लालू प्रसाद के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने और बड़े पुत्र तेजप्रताप यादव स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए। लेकिन राजनीति में भावनाओं का स्थाई महत्व नहीं होता और भविष्य में किसी तरह की स्थिति से निपटने के लिए विधानसभा अध्यक्ष का पद जेडीयू ने अपने पास रखा। कुछ दिनों तक सब ठीकठाक रहा, लेकिन जब लालू प्रसाद हावी होने की कोशिश करने लगे तो नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया।

वे इस बात को अच्छी तरह समझ चुके हैं कि नरेन्द्र मोदी केंद्र में स्थापित हो चुके हैं और राज्य में विकास गतिविधियों को पूरा करने के लिए केंद्र का सहयोग नितांत आवश्यक है। लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। नीतीश कुमार अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं और वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति उन्हें इस बात की इजाजत दे रही है। तभी वो कभी गुरु गोविंद सिंह के जन्मोत्सव के अवसर पर प्रधानमंत्री के साथ दिखते हैं तो कभी पटना पुस्तक मेला में कमल के फूल में भगवा रंग भरते हैं।
नीतीश कुमार आज नहीं तो कल वर्तमान गठबंधन से बाहर आएंगे यह ध्रुव सत्य है। लेकिन उन्हें कब पहले वाला महत्व नहीं मिलने वाला है। जब तक यह स्थिति चल रही है चलेगी। एक-दूसरे पर वार-पलटवार और तीसरे गठबंधन की संभावना भी तलाशी जाती रहेंगी, क्योंकि राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न ही स्थाई दुश्मन।
Nitish Kumar Lalu Prasad Yadav Narendra Modi PMO India PMO India : Report Card Amit Shah #BJP
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