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बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

संपादक की गिरफ्तारी का आदेश देने वाला चुनाव आयोग आपराधिक छवि वाले नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं करता

हरेश कुमार


दैनिक जागरण के संपादक को गिरफ्तार करने का आदेश देने वाला चुनाव आयोग किसी नेता पर कार्रवाई करते समय पंगु क्यों हो जाता है। आप दैनिक जागरण के संपादक को गिरफ्तार करने का आदेश दो ये आपका हक है और इसपर कोई उंगली नहीं उठा रहा, लेकिन इसी चुनाव के दौरान नेताओं के कार्यों पर आपकी चुप्पी उंगली उठाती है। इस देश में हत्या, बलात्कार, पॉकिटमार संसद और विधानसभाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं और उनके खिलाफ देश की विभिन्न अदालतों में मामले चल रहे हैं, लेकिन कार्रवाई की रफ्तार जानबूझकर इस धीमी गति से होती है कि बंदा राजनीति में सफल पाऱी खेल चुका होता है।

इतना ही नहीं वो मंत्री भी बन जाता है। कल तक जो पुलिस वाले उसे पकड़ने के लिए लगातार छापा डालते थे वे अब सैल्यूट करते हैं। क्योंकि संविधान की शपथ लेकर वो मंत्री बन चुका है। निचली अदालतों में अगर उसपर कोई फैसला आता है तो वह ऊपरी अदालतों में उसे चुनौती देता है और यह प्रक्रिया चलती रहती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी चुनौती देने के लिए याचिका लगाते रहे हैं इस देश के नेतागण।

इस बीच गवाहों को तोड़ने,पक्ष में झुकाने से लेकर स्थानीय प्रशासन व सत्ता की मदद से सबूतों को या तो पूरी तरह खत्म कर दिया जाता है या फिर इतना छेड़छाड़ हो चुका होता है कि अपराधी को संदेह का लाभ मिल जाता है। इस देश में कहावत है कि चाहे सौ अपराधी छूट जाए, लेकिन एक बेगुनाह हो सजा नहीं मिलनी चाहिए और होता ठीक उलटा है। चाहे सौ लोग मारे जाएं, किसी नेता को उसकी सजा नहीं मिलती। अपवादों को छोड़ दें तो।


क्या चुनाव आयोग अपनी भूमिकाओं के साथ निर्वाह करेगा या फिर अपने मालिक के इशारे पर ही चलता रहेगा। सबसे पहले चुनाव आयोग में नियुक्तियों को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त किया जाना जरूरी है। इस देश में ऐसे कई चुनाव आयुक्त भी हुए हैं जिनकी किसी पार्टी विशेष के प्रति निष्ठा किसी से छुपी नहीं रही।

कांग्रेस नेतृत्व वाली तत्कालीन संप्रग सरकार ने नवीन चावला को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया था, जिनके बारे में शाह आयोग की टिप्पणी थी कि वह किसी भी सार्वजनिक पद को संभालने के लिए अयोग्य है। बाद में वह मुख्य चुनाव आयुक्त भी बने। मुख्य सतर्कता आयुक्त के चयन में भी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम की भूमिका की अनदेखी नहीं कर सकते। तब उन्होंने पीजे थॉमस के चयन के विरोध में विपक्ष की नेता और कमेटी की तीसरी सदस्य सुषमा स्वराज की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया था। उल्लेखनीय है कि पीजे थॉमस के खिलाफ केरल की अदालत में मामले लंबित थे। ऐसे एक नहीं कई मामले हैं और इन सबकी नियुक्तियों को लेकर जनता में कभी अच्छा संदेश नहीं गया।

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