पेज

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

जी हां, इस देश के अपराध जगत की यह एक सच्चाई है

हरेश कुमार

जिस देश में हत्या, बलात्कार, अपहरण, रंगदारी, पॉकिटमारी, नकबजनी, चोरी छिनतई जैसे अपराधों में शामिल रहे लोग कथित सबूतों के अभाव में बाइज्जत बरी होकर जनप्रतिनिधि बनते रहे हों वहां आप अगर किसी तरह के न्याय की उम्मीद करते हैं, तो आपके इस तरह के उम्मीदों पर सौ-सौ बार न्योछावर करने का मन करता है।

जहां एक अपराधी संसद और विधानसभा में बैठकर कानून ही नहीं बनाता, बल्कि जजों और पुलिस-प्रशासन की पोस्टिंग, ट्रांसफर और नियुक्तियों का अधिकार भी रखता हो वहां उसके बाइज्जत बरी होने और विरोधियों द्वारा फंसाने की बात होती रहेगी। 

इन अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि इन्हें पता होता है किसी भी तरह के अपराध में होना-जाना कुछ नहीं है। बस तसल्ली के लिए कुछ पॉकिटमारों को अंदर कर देते हैं इसमें भी बड़े गिरोहों पर एकाध अपवादों को छोड़ दें तो कोई हाथ नहीं डालता। इसके दो कारण हैं- सभी अपराधियों ने आपस में इलाकों को बांट लिया है और समय-समय पर पुलिस-प्रशासन व स्थानीय नेताओं या उनके प्रतिनिधियों को एक निश्चित तय रकम पहुचाते रहते हैं।


इस तरह की सेवाओं में जहां कहीं कमी हुई और थोड़ी भी चालाकी किसी ने की तो फिर एक नया गिरोह आ जाता है और पुराना वाला पुलिस-प्रशासन व सत्ता की सहायता से अपने अंजाम को प्राप्त होता है। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। यह इस देश का शाश्वत सत्य है। सबकी हिस्सेदारी बंधी है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें