सबकुछ हमारी-आपकी आंखों के सामने घटित हुआ
लेकिन उससे भी दुख इस बात का
हमारी आंखों पर परिवार के
हिफाजत का पर्दा चढ़ जाता है।
और फिर सबकुछ जानते हुए भी
हम कह उठते हैं
जी, हमने कुछ घटते हुए नहीं देखा।
ये डर, ये खौफ का मंजर है इस कदर
कि सबकुछ देखते-जानते हुए भी चुप रहते हैं हम।
मैं अपने आप से ही पूछता हूं
ये कैसा गठजोड़ है!
नेताओं-प्रशासनिक अफसरों और दलालों का
यहां कातिल भी बिना किसी भय के पूछता है कि हुआ क्या है!
और
एक आप-हम हैं कि सब देखते-जानते व समझते हुए भी चुप हैं!

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