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रविवार, 15 जनवरी 2017

प्रकाशोत्सव के सफल आयोजन का सेहरा आप अपने सिर बांधते हैं, तो नाव दुर्घटना की जिम्मेदारी भी आपकी बनती है

हरेश कुमार


बिहार सरकार ने अभी हाल ही में प्रकाशोत्सव का सफल आयोजन किया था और सभी ने एक-दूसरे का न सिर्फ सहयोग किया, बल्कि सफलता का सेहरा अपने-अपने सिर पर बांधा। मकर संक्रांति की शाम को नाव हादसे में मारे गए लोगों की जिम्मेदारी भी उसी साहस से सबको लेनी चाहिए। सच तो ये है कि मकर संक्रांति के अवसर पर दियारा में होने वाले पतंगोत्सव में शामिल होने वाले लोगों के सकुशल वापसी को लेकर किसी तरह का पुख्ता इंतजाम नहीं किया गया था।


दो साल के बाद बिहार सरकार और उसके कर्मचारी भारतीय जनता पार्टी के साथ इस अवसर पर आयोजित चूड़ा-दही के भोज को यादगार बनाने की तैयारियों में जुटे थे और यही कारण रहा कि इतने बड़े हादसे के बाद भी सही समय पर प्रशासन के लोग घटनास्थल पर आ न सके। अगर स्थानीय लोगों ने मदद न की होती तो नाव पर सवार सारे लोग मारे जाते।

राजनीतिज्ञों को इससे क्या फर्क पड़ने वाला है। एक और निगरानी समिति बैठेगी। जांच कार्रवाई होगी और फिर नतीजा फुस्स। चाहे छठ पर्व के समय हादसा हो या गांधी मैदान में भगदड़ या कोई और दुर्घटना आज तक किसी नेता या वरिष्ठ अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

सवाल ये है कि सफल आयोजन की जिम्मेदारी नेता व वरिष्ठ अधिकारी लेते हैं, तो असफलता की जिम्मेदारी कौन लेगा? एक बार फिर से निचले स्तर के अधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर सभी अगले दुर्घटना होने तक चादर तानकर सो जाएंगे।

यह देश सिर्फ अमीरों, पैसे वालों और उच्चाधिकारियों की जान की कीमत समझता है। आम आदमी या मध्यमवर्गीय किसी व्यक्ति को किसी तरह के उत्सव मनाने की आजादी नहीं और अगर इतना सब होने के बाद भी वे किसी उत्सव में भाग लेते हैं तो अपने जान को वे खुद मौत के कुएं में धकेलते हैं। इसके लिए प्रशासन किसी तरह से जिम्मेदार नहीं।


एक जिला स्तर का छुटभैया नेता अगर इस तरह के कार्यक्रमों में भाग लेता है, तो भी प्रशासन के लोग मुस्तैद होते हैं। लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद लीपापोती करना अब सामान्य-सी घटना बनकर रह गई है। खुश रहिए कि हम में से कई लोग उस पतंगोत्सव में भाग नहीं लिए थे वरना और लोगों की जान जाती।
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