हरेश कुमार
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही ब्रिटेन अमेरिका का पिछलग्गू देश बन चुका था। यहां तक कि ब्रिटेन से आजादी और भारत को दो टुकड़े करने के बाद पाकिस्तान बनने पर अमेरिका सबसे पहला देश था जिसने उसे मान्यता दी थीा। सोवियत युग (शीतयुद्ध के समय) में अफगानिस्तान ही नहीं, भारत पर नकेल कसने के लिए भी अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत रही। आज भले ही अमेरिका के प्रेसिडेंट डोनाल्ट ट्रम्प ने पाकिस्तान
पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, लेकिन आने वाले समय में उस पर प्रतिबंध लगना तय है, क्योंकि वहां के आतंकी गुटों व कट्टरपंथियों पर पाकिस्तान सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है।
शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका और उसके सहयोगी देशों से उसे भरपूर आर्थिक सहायता व हर तरह के विध्वंसक हथियार दिए गए थे। अमेरिका और सऊदी अरब से मिले आर्थिक मदद को पाकिस्तान की सत्ता पर बैठे लोगों ने कट्टर धार्मिक संगठनों व आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने और दुनियाभर में भेजने में इसका उपयोग किया। वहां के शासक चाहते तो इन पैसों से आधुनिक शिक्षा, चिकित्सा की ऐसी मिसाल कायम करते कि दुनिया उसे देखते रह जाती, लेकिन वो कहते हैं जिसे एक बार मुफ्त खाने की लत लग जाती है उसकी हालत उस नशेड़ी की तरह हो जाती है जो बगैर नशा के जी नहीं सकता। दया का पात्र बने नशेड़ी को गाली देने के बाद भी लोग तो फिर भी कुछ दे देते हैं, लेकिन पाकिस्तान तो उस लायक भी नहीं रहा।
दूसरों के कंधों का इस्तेमाल बंदूक चलाने के लिए करने वाले लोग एक समय ऐसा आता है जब उस कंधा को छटक देते हैं। पाकिस्तान की हालत ऐसी ही होने वाली है। पाकिस्तान ने अपना कंधा दिया और उसकी भरपूर कीमत वसूल की है। इसलिए वो यह क्लेम भी नहीं कर सकता है कि अमेरिका ने उसका इस्तेमाल किया। पाकिस्तान और वहां के नेता कोई दूध पीते बच्चे तो थे नहीं जो उन्हें इस तरह की स्थितियों का ज्ञान न रहा हो। अपनी अय्याशी व भ्रष्टाचार के लिए पूरे देश को गिरवी रख देना कोई इन नेताओं से सीखे।
आज वहां की अधिकांश आबादी कट्टरपंथियों के चंगुल में फंस चुकी है, जिनके लिए हर वक्त एक-47, मोर्टार व गोली-बारूद ही एकमात्र सहारा रह गया है। इसके बिना ये एक मिनट भी नहीं रह सकते।
आजादी के समय पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी 40 प्रतिशत थी लेकिन आज 1 प्रतिशत भी नहीं रही। वहां की सत्ता पर काबिज लोगों ने मुस्लिम कट्टरपंथियों को खुली छूट दी, बदले में ये सब देश और जनता को लूटते रहे और इधर कट्टरपंथी हिंदुओं की बहू-बेटिूयों से बलात्कार और धर्म-परिवर्तन कराते रहे। भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों को आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जाता है और इन्हें 'मुहाजिर' कहकर संबोधित किया जाता है।
9/11की घटना के बाद से अमेरिका में पाकिस्तान को लेकर एक नई बहस शुरू हो चुकी है। आर्थिक सहायता में काफी कटौती की जा चुकी है। हालांकि, यह पूरी तरह से अभी बंद नहीं हुआ है, लेकिन अमेरिका अब पाकिस्तान का आंख मूंदकर समर्थन नहीं करता। शीतयुद्ध के बाद अमेरिका की राजनीतिक जरूरतें भी बदली है। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की हत्या के पीछे भी पाकिस्तानी आतंकियों औऱ वहां की सत्ता पर काबिज नेताओं की सांठगांठ उजागर हो चुकी है।
इधर, अमेरिका से पहले की तरह मदद न मिलने पर पाकिस्तान के शासक अपने आप को चीन के हवाले कर चुके हैं और अपनी स्वायत्तता को चीन के आगे गिरवी रख दिया है, ताकि चीन से आर्थिक मदद ली जा सके और भारत को बैलेंस रख सकें। अब इन्हें कौन समझाए कि भारत विरोध में जिस रास्ते पर जा रहे हो वह रास्ता आपको विनाश की ओर ले जा रहा है।
अभी भले आपको सबकुछ अच्छा लग रहा है, लेकिन यह मैत्री आने वाले समय में आपके देश को और बर्बाद कर देगी।
जिस तरह से पिता अपने बच्चों को एक समय के बाद मुफ्त मे कुछ नहीं देता है तथा बालिग होने पर पुत्र से परिवार के देखभाल की उम्मीद करता है। वैसी ही उम्मीद सभी की होती है, अन्यथा छोटी-छोटी बातों पर परिवार बिखर जाता है। ठीक वैसे ही जो भी आपकी मदद करता है उसकी भी कुछ आशायें- इच्छाएं होंगी।
मुफ्त में कोई किसी को कुछ नहीं देता। आज चीन पाकिस्तान की भले ही मदद कर रहा हो, लेकिन वह सिर्फ भारत को घेरने में मदद औऱ विश्व में अपनी एक अलग पहचान को लिए ऐसा कर रहा है। वह आपके संसाधनों का जमकर दोहन करेगा और अरब देशों में अपने प्रोडक्ट को भेजने के लिए आपका इस्तेमाल करेगा, फिर पैर जमाने के बाद आपको एक ही झटके में रास्ते पर ला खड़ा कर देगा। उस समय आपके साथ कोई अन्य देश नहीं रहेगां। क्योंकि आप दूसरे देशों से मिल रही आर्थिक मदद का दुरुपयोग आतंकियों के प्रशिक्षण व नेताओं के ऐशो-आराम पर कर रहे हैं।
क्या बात है कि दुनिया में कहीं भी आतंकवादी घटना हो पाकिस्तान का नाम आता ही है? कभी इन बिंदुओं पर वहां की सत्ता पर काबिज नेता, सैन्य अधिकारी व सामाजिक संगठनों या वहां की जनता ने सोचा है?
पाकिस्तान की राजनीति में सेना अहम स्थान रखती है औऱ बगैर उसकी मर्जी के कोई भी नेता सत्ता पर एक मिनट भी नहीं रह सकता है। वहां के सेनाधिकारियों को राजनीति का स्वाद ठीक उसी तरह से लग चुका है जिस तरह से आदमखोर हिंसक पशुओं को इंसानी मांस की लत लग जाती है। इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए आदमखोर पशु को मारना ही एकमात्र उपाय रह जाता है। पकिस्तान की भी यही स्थिति है।उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है तो सबसे पहले आतंकवादियों को किसी तरह के समर्थन देने से रोकना होगा वरना उसका अंत सुनिश्चित है। पाकिस्तान एक असफल राष्ट्र बन चुका है।
भारत से अंध विरोध उसे कहीं का नहीं छोड़ेगा। अब भी समय है कि वह अपनी स्थिति को समझे और आतंक की फैक्ट्री पर ताला लगाए, वरना उसका टुकड़ा होना तय है। बस समय की प्रतीक्षा है।
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