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रविवार, 29 जनवरी 2017

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बौद्धिक जुगाली करना कोई वामपंथियों से सीखे

हरेश कुमार
मुझे वामपंथियों, सेकुलरों से एक दिन में घृणा नही हुई, लंबे समय तक ऐसे लोगों को पढ़ता और सुनता रहा हूं मैं। ये अपने एजेंडा को लागू करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। कभी किसी आतंकी और नक्सली घटना पर इनकॆ विचारों को किसी ने सुना नहीं होगा। अवॉर्ड रिटर्न गिरोह ऐसे ही लोगों को संरक्षण देता रहा है।
इरफान जैसे इतिहासकार वामपंथी बौद्धिकों की उपज हैं। वामपंथी और सेकुलर लोगों का एक ही काम है- हिंदुओं से जुड़ी मान्यताओं को गलत ठहराना। इनके लिए रामायण और महाभारत भी एक मिथक है फिर पद्मावती की क्या हैसियत? एक पेंटर हुआ करते थे जो माता सरस्वती की नंगी तस्वीरें बनाते थे और ये बौद्धिक तबका उन्हें महान पेटर बताते नहीं थकता था। मेरा साफ-साफ कहना और मानना है कि आपने जिस तरह से माता सरस्वती की तस्वीर बनाई थी, एक बार अपनी मां की वैसी ही तस्वीर बनाते तो हम आपकी कला की कद्र करते, लेकिन आपकी नीयत में ही खोट रही है शुरू से।
इन जैसे बौद्धिक लोगो का एकमात्र एजेंडा रहा है- हिंदू धर्म और उससे जुड़ी मान्यताओं को गलत ठहराना। आपके लिए महाभारत, रामयाण सब मिथक है बस अल्लाह और उसका आसमानी किताब एकमात्र हकीकत है। आपकी सोच आप सबको मुबारक हो।
पद्मावती का जौहर आपके अनुसार मिथक है। आपसे कोई उम्मीद भी किसी को नहीं है। ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर सामने रखना आप सबसे सीखे। आपके लिए बाबरी मस्जिद है, लेकिन जिस राममंदिर को तोड़कर आक्रमणकारी बाबर और उसके सिपहसलाहकारों ने बनाया वो एक मिथक है।
अच्छा हुआ कि समय रहते आपको हिन्दुस्तान की जनता ने पहचान लिया और आप अपनी बनाई हुई दुनिया में सिमटने को बाध्य हो चुके हो। आपके चेहरे से नकाब उतर चुका है जनाब। वक्त रहते सुधर जाओ, वरना आपको सुधार देंगे लोग।

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