और
राजनेताओं की एक खूबी
ऐसा कोई नहीं जिसको इन लोगों ने ठगा नहीं होता है।
आप खुद देखिए।
गौरतलब है कि साल 2103 में पीएम नरेंद्र मोदी को बीजेपी चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाए जाने के बाद बीजेपी और जेडीयू में खटास आ गई थी। उस समय पीएम नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे और नीतीश कुमार नहीं चाहते थे कि उन्हें पीएम उम्मीदवार के तौर पर साल 2104 के लोकसभा चुनाव में उतारा जाए। मोदी को चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाए जाने के बाद जेडीयू ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अपना 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ते हुए भोज भी रद्द कर दिया था। फिर उसी Lalu Prasad Yadav की शरण में गए जिसे सत्ता से हटाकर बिहार ही नहीं देश में एक पहचान पाई थी।
आज यही नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी हैं जो एक-दूसरे को न सिर्फ बधाई दे रहे हैं, बल्कि तारीफों के पुल बांध रहे हैं। लालू प्रसाद यादव को बिहार की जनता ने बड़ा मौका दिया था, लेकिन ये अपने परिवारवाद से कभी आगे सोच ही नहीं सके। अपराधियों को संरक्षण देना इन्होंने न पहले छोड़ा था और न अब छोड़ा है। जबकि लोगों के सामने हाथ जोड़े चुनाव में जाते थे कि अब मौका देकर देखिए। हमारी पिछली गलतियों को भूल जाइए। लेकिन जो लोग राजनीति को जानते हैं उन्हें पहले से ही सब पता था कि होना-जाना कुछ है नहीं। जब तक हम जाति और धर्म से मुक्त नहीं होंगे तब तक ऐसा ही होता रहेगा।
मीडिया ने इन्हें सुशासन बाबू का नाम दिया था। बिहार में जंगलराज को हटाकर एक स्वच्छ प्रशासन देने की कोशिश में लगे नीतीश कुमार शुरू से ही बहुत महत्वाकांक्षी नेता रहे हैं। ये अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा ही थी जिसने इन्हें अपने साथ जोड़ा और रेल मंत्री से लेकर कृषि मंत्री का पद देकर बिहार में लालू प्रसाद से लड़ने के लिए आगे किया। वरना ये समता पार्टी से लड़ते हुए 7 सीट पा सके थे।
इन्टॉलरेंस, अवॉर्ड रिटर्न गिरोह और आरक्षण के मुद्दे पर आरएसएस प्रमुख सुदर्शन के दिए बयान की आड़ लेकर भले ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने बिहार चुनाव जीत लिया लेकिन बिहार की जनता को मिला क्या? आए दिन हत्या, अपहरण और बलात्कार की खबरें अब आम हो चुकी हैं।
#NitishKumar #LaluPrasadYadav #NarendraModi #Bihar #PrakashParv #350years #Patna
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें