"बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां है, जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, कोई नहीं जानता।" जिंदादिली की नई परिभाषा गढने वाला हिन्दी सिनेमा का आनंद अब नहीं रहा, लेकिन आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं। राजेश खन्ना का जब भी जिक्र होगा, आनंद के बिना अधूरा रहेगा।
आनंद ने सिखाया कि मौत तो आनी है, लेकिन हम जीना नहीं छोड़ सकते। जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए। जिंदगी जितनी जियो, दिल खोलकर जियो। हिन्दी सिनेमा का यह आनंद भले ही अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसका यह किरदार कभी नहीं मरेगा।
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