एक थे छेदी लाल। इज्जत थी, दौलत थी, शोहरत थी, लेकिन घर वालों ने उनका नाम ऐसा रखा, जिसके चलते वो बहुत परेशान रहते। बेचैन रहते कि ये भी कोई नाम है भला, इतना बड़ा आदमी और नाम छेदीलाल। हद तो तब होती जब कुछ लोग उन्हें चिट्ठी लिखते, नाम की जगह पेन से एक छेद बना देते और आगे लिख देते-लाल। इस पर छेदीलाल लाल-पीले हो जाते।
एक रोज उन्होंने तय किया कि अब नाम बदल लेंगे। पंडितजी के पास गए, पंडित जी ने बताया कि एक बार नाम पड़ गया तो पड़ गया। नाम बदलोगे तो धर्म भी बदलना पड़ेगा। छेदीलाल नाम बदलने पर आमादा थे।
उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया, कलमा पढ़वाकर मौलाना ने कहा कि अब से आप मुसलमान हो गए। आपका नया नाम होगा-सूराख अली। बेचारे छेदी लाल फिर परेशान। अब भी चिट्ठी वैसे ही आती। लोग नाम की जगह सूराख बना देते, आगे लिखते अली।
धर्म बदलने के लिए अभी उनके पास ऑप्शन थे। उन्होंने इस बार ईसाई धर्म कबूल किया। पादरी ने चर्च में बाकायदा उन्हें ईसाई बनाया और कहा-अब तुम ईसाई बन गए और अब से तुम्हारा नाम होगा-मिस्टर होल। धर्म बदला, तकदीर नहीं बदली छेदीलाल की। अब चिट्ठियों में छेद 'मिस्टर' के आगे लगने लगा, लोग 'मिस्टर' लिखते, आगे छेद बना देते।
बहरहाल छेदीलाल हार मानने वाले नहीं थे। कुछ दिनों बाद उन्होंने सिख धर्म अपनाने की ठानी। गुरुद्वारे में पहले ही कह दिया कि भाई मेरा नाम ऐसा रखना, जिसमें कोई छेद, होल, सूराख न हो। तय हो गया। छेदीलाल सिख बन गए, गुरुद्वारे में मत्था टेका, पंथी ने कहा-अब तुम सिख हो गए, तुम्हारा नया नाम होगा-गड्ढा सिंह। बचपन में मिले नाम से छेद हटाते-हटाते छेदीलाल गड्ढा तक पहुंच गए।
ये चुटकुला टाइप की कहानी बचपन में मुझे किसी ने सुनाई थी। आज ऐसे ही मन में सवाल आया कि क्या देश की किस्मत भी छेदी लाल की तरह ही हो गई है, लाख उपायों के बावजूद ब्लैकमनी और भ्रष्टाचार देश की किस्मत से हटने का नाम भी नहीं ले रहे। नोटबंदी के बाद करोड़ों की जो रकम नए और पुराने नोटों की शक्ल में पकड़ी जा रही है, वो आप देख पा रहे हैं, जान पा रहे हैं, लेकिन जो इधर से उधर हो रही है या हो चुकी है, जरा उसके बारे में अंदाजा लगाइए, वो रकम कितनी होगी। ध्यान रहे काले कारोबार में नाकामी का प्रतिशत बेहद कम होता है। बेईमानी का धंधा बेहद ईमानदारी से चलाया जाता है।
@VikasMishra सर की वॉल से साभार
एक रोज उन्होंने तय किया कि अब नाम बदल लेंगे। पंडितजी के पास गए, पंडित जी ने बताया कि एक बार नाम पड़ गया तो पड़ गया। नाम बदलोगे तो धर्म भी बदलना पड़ेगा। छेदीलाल नाम बदलने पर आमादा थे।
उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया, कलमा पढ़वाकर मौलाना ने कहा कि अब से आप मुसलमान हो गए। आपका नया नाम होगा-सूराख अली। बेचारे छेदी लाल फिर परेशान। अब भी चिट्ठी वैसे ही आती। लोग नाम की जगह सूराख बना देते, आगे लिखते अली।
धर्म बदलने के लिए अभी उनके पास ऑप्शन थे। उन्होंने इस बार ईसाई धर्म कबूल किया। पादरी ने चर्च में बाकायदा उन्हें ईसाई बनाया और कहा-अब तुम ईसाई बन गए और अब से तुम्हारा नाम होगा-मिस्टर होल। धर्म बदला, तकदीर नहीं बदली छेदीलाल की। अब चिट्ठियों में छेद 'मिस्टर' के आगे लगने लगा, लोग 'मिस्टर' लिखते, आगे छेद बना देते।
बहरहाल छेदीलाल हार मानने वाले नहीं थे। कुछ दिनों बाद उन्होंने सिख धर्म अपनाने की ठानी। गुरुद्वारे में पहले ही कह दिया कि भाई मेरा नाम ऐसा रखना, जिसमें कोई छेद, होल, सूराख न हो। तय हो गया। छेदीलाल सिख बन गए, गुरुद्वारे में मत्था टेका, पंथी ने कहा-अब तुम सिख हो गए, तुम्हारा नया नाम होगा-गड्ढा सिंह। बचपन में मिले नाम से छेद हटाते-हटाते छेदीलाल गड्ढा तक पहुंच गए।
ये चुटकुला टाइप की कहानी बचपन में मुझे किसी ने सुनाई थी। आज ऐसे ही मन में सवाल आया कि क्या देश की किस्मत भी छेदी लाल की तरह ही हो गई है, लाख उपायों के बावजूद ब्लैकमनी और भ्रष्टाचार देश की किस्मत से हटने का नाम भी नहीं ले रहे। नोटबंदी के बाद करोड़ों की जो रकम नए और पुराने नोटों की शक्ल में पकड़ी जा रही है, वो आप देख पा रहे हैं, जान पा रहे हैं, लेकिन जो इधर से उधर हो रही है या हो चुकी है, जरा उसके बारे में अंदाजा लगाइए, वो रकम कितनी होगी। ध्यान रहे काले कारोबार में नाकामी का प्रतिशत बेहद कम होता है। बेईमानी का धंधा बेहद ईमानदारी से चलाया जाता है।
@VikasMishra सर की वॉल से साभार
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