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गुरुवार, 6 नवंबर 2025

बिहार के मतदताओं से खास अपील - लालूप्रसादयादव की पार्टी 'राजद' और 'कांग्रेस' गठबंधन को कभी वोट न दें

 

हरेश कुमार


#लालूप्रसादयादव #मौलानामुलायम जैसे कमीने सदियों में पैदा लेते हैं। इन कमीनों ने अपनी राजनीति के लिए देश को जो घाव दिया है उसकी भरपाई बहुत मुश्किल है। उत्तर प्रदेश तो बीमारू प्रदेश से बाहर निकल आया, लेकिन बिहार को काफी समय लगेगा, क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार के कंधों पर सारी जिम्मेदारी है और वो दो बार पलट गए। इसके कारण केंद्र और राज्य के संबंधों में कटुता आई औऱ राज्य के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।




फिलहाल हम बिहार और लालू प्रसाद यादव की बात कर रहे हैं
1989 के दशक में मंडल और कमंडल की लड़ाई में विश्वनाथ प्रताप सिंह रामसुंदर दास को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, वे भले आदमी थे। वहीं, पीएम की रेस में पीछे रह गए देवीलाल ने चंद्रशेखर की सहायता लेकर बिहार में लालू प्रसाद यादव के अलावा तीसरा फ्रंट रघुनाथ झा के रूप में खोल दिया, ताकि रामसुंदर दास को किसी तरह रोककर विश्वनाथ प्रताप सिंह को उनकी औकद बताई जा सके। रामसंदुर दास को लालू प्रसाद से 4 वोट अधिक मिला था, लेकिन रघुनाथ झा को मिले19 वोट ने खेल पलट दिया और लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बनाए गए। जिस देवीलाल ने चंद्रशेखर की मदद लेकर लालूप्रसाद को सीएम बनाया, लालू ने उन्हें भी हरियाणा का बैल कहकर उनकी औकत बता दी।




इतना ही नहीं, लालू प्रसाद यादव ने आगे चलकर रघुनाथ झा को शिवहर में हराने और बेईज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। रघुनाथ झा तंद्रशेखर की पार्टी समाजवादी जनता पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर शिवहर लोकसभा सीट से क्लीन स्वीप कर रहे थे। शिवहर से वे 27 साल विधायक रहे थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव ने प्रशासन की सहायता लेकर रघुनाथ झा के बैलेट बॉक्स को बागमती नदी की धारा डुब्बा नदी में फेंकवा दिया और बचे हुए बक्से को बदल दिया।
लालू यादव सीना ठोककर कहा करते थे- बैलेट बॉक्स खुलने पर जिन्न निकलेगा, क्योंकि वो बूथ छापने के माहिर थे। यही वो दौर था, जब बिहार में अपराधियों और बाहुबलियों ने नेतागीरी को अपना मुख्य धंधा बना लिया। इसके पहले तक ये सारे ठेकेदारी करते थे और चुनाव के समय बूथ कब्जा कर नेताजी के लिए बैलेट पेपर छापते थे। 1990 के दशक में बहुत कम भाग्यशाली लोग थे, जो अपना वोट डाल पाते थे।

पटना के महेंद्रू में मलेरिया ऑफिस के पास हरिजन हॉस्टल से 100 कदम की दूरी पर पटना ट्रेनिंग कॉलेज में तबके राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार रहे रामकृपाल यादव को हमने अपनी नंगी आंखों से बूथ कैप्चरिंग करते देखा था। पूरा पटना जिला प्रशासन इस कार्य में रामकृपाल यादव की मदद कर रहा था, क्योंकि वो लालू के चहेते थे और तब रंजन यादव के बाद उनका ही स्थान हुआ करता था।

आगे चलकर रघुनाथ झा से फिर से पैचअफ हुआ और रिश्वत में शिवहर को जिला बनाया गया। यहां लालू प्रसाद ये रघुवंश सिंह रूढ़ गए, क्योंकि वो अपने निर्वाचन क्षेत्र बेलसंड को जिला बनाना चाहते थे।




लालू प्रसाद यादव ने अपने भाई के लड़कों या ससुराल के लोगों तक को नौकरी देने के बदले जमीन लिखवा लिया। पिछले दिनों एक वीडियो देख रहा ता उसमें राबड़ी देवी की एक चाची कह रही थी कि उनके दो लड़कों को राबड़ी देवी ने मरवा दिया। रेलवे में नौकरी दिलाया तो जमीन लिखवाया। फिर राबड़ी के चाचा पैसे छीन लेते थे और एक दिन छाती पर लात रखकर मार दिया। यह बहुत ही नीच परिवार है।
लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में भूराबाल साफ करो का खुलेआम नारा लगाया जाता था। भूराबाल- भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला यानी कायस्थ। उसी समय सेनारी और बारा और अन्य नरसंहार हुए थे, जो नक्सलियों की आड़ लेकर लालू यादव ने खुलेआम गुंडों और अपराधियों को आगे कर एक जाति विशेष खासकर भूमिहारों को नरसंहार कराया था। राबड़ी देवी से जब बिहार के संवददाताओं ने सेनारी नरसंहार स्थल का दौरा करने के लिए पूछा, तो राबड़ी ने छूटते ही कहा था- हम काहे जाएं, वो हमारा वोटर नहीं है।
याद रखिएगा, इन बातों को, यह नीच परिवार किसी का सगा नहीं है। जरूरत पड़ने पर किसी को अपना बाप बना लेता औऱ जरूरत पड़ते ही लात मारकर बाहर।
राम मनोहर लोहिया मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी रहे डॉक्टर सुभाष मिश्रा के इकलौते पुत्र अभिषेक मिश्र की हत्या कर दी गई थी। वो कुछ न कर सके, क्योंकि झारखंड में लालू के समर्थक मधु कोड़ा की सरकार थी। कोड़ा की सरकार लालू की पार्टी के समर्थन से चल रहा था।
रांची के बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटी) में कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहे छात्र अभिषेक का कथित तौर पर लालू की बेटी रागिनी के साथ प्रेम संबंध था।
डॉक्टर मिश्रा ने जोर देकर कहा था, "मेरे बेटे की मौत कोई दुर्घटना नहीं थी। मेरे पास सभी आरोपियों को फंसाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। मेरे पास उस दिन खींची गई तस्वीरें और वीसीडी हैं। अभिषेक के चेहरे पर गहरा घाव था। ऊपर का एक दांत टूटा हुआ था, उसके दाहिने पैर पर गहरा निशान था और उसकी खोपड़ी पीछे से टूटी हुई थी। ऐसी चोटें गिरने से नहीं आतीं।"
लालू यादव नाम के इस कलंक कथा को लिखने के लिए हजारों पन्ने कम पड़ जाएंगे। बिहार के मतदाताओं से हाथ जोड़कर विनम्र निवेदन है कि लालू प्रसाद यादव का जंगलराज दोबारा न आने दें।
जिस तरह से सांप का बच्चे को आप कितना भी दूध पिलाएं, वह काटना नहीं छोड़ता, ठीक उसी तरह से लालू का पूरा परिवार आतंकियों और अपराधियों को घर संरक्षक और समर्थक रहा है। इस चुनाव में बी लालू ने रीतलाल यादव, शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा जैसे छंटे हुए बदमाशों को टिकट ही नहीं दिया, उसका प्रचार भी कर रहे।

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