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मंगलवार, 20 अगस्त 2024

जयपुर में भगवान गोपीनाथ का वह विग्रह, जहां हाथ में घड़ी पहनते हैं भगवान




छोटी काशी कहे जाने वाले राजधानी जयपुर में भगवान श्री कृष्ण का एक ऐसा विग्रह है, जो हाथ में घड़ी धारण करता है। मान्यता है कि यहां मौजूद विग्रह को भगवान श्रीकृष्ण के ही प्रपौत्र वज्रनाभ ने अपनी दादी के कहने पर बनवाया था।  बाद में इसे वृंदावन से जयपुर लाया गया। आज श्रद्धालुओं के बीच पुरानी बस्ती स्थित मंदिर में ठाकुर जी के इस विग्रह को गोपीनाथ के रूप में पूजा जाता है।


गोपीनाथ जी मंदिर महंत सिद्धार्थ गोस्वामी ने बताया कि राजस्थान में मौजूद भगवान श्री कृष्ण के तीन विग्रह, करौली के मदन मोहन जी, जयपुर के गोविंद देव जी और गोपीनाथ जी को एक ही शिला से तैयार किया गया था।  मान्यता के अनुसार, कंस ने जिस शिला पर अपनी बहन के जन्मे बच्चों को मारा था, भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने उसके तीन टुकड़े किए थे। इससे जो पहला विग्रह बना, वो मदन मोहन जी का था। ये वर्तमान में करौली में है। इनके चरण ठाकुर जी से मिलते हैं। दूसरा विग्रह गोपीनाथ जी कहलाया। वर्तमान में ये जयपुर के पुरानी बस्ती में मौजूद है। इनके वक्ष स्थल और भुजाएं ठाकुर जी के समान हैं।आखिर में तीसरा विग्रह गोविंद देव जी का बना, जिनका मुखारविंद ठाकुर जी से मेल खाता है। मान्यता है कि ये तीनों ही विग्रह करीब 5000 साल पुराने हैं।




मंदिर में विराजे गोपीनाथ जी

औरंगजेब से बचाकर लाया गया था जयपुर : महंत सिद्धार्थ गोस्वामी ने बताया कि गोपीनाथ जी की प्रतिमा यमुना किनारे वंशीघाट पर मिली थी। इसकी सेवा का जिम्मा मधु गोस्वामी को मिला था। 1669 तक उन्होंने वृंदावन में ही ठाकुर जी की सेवा की। जब औरंगजेब मंदिर तोड़ने लगा, तब ठाकुर जी को लेकर छुपते-छुपाते राधा कुंड और काम्यावन होते हुए 1775 में जयपुर लाया गया। गोपीनाथ जी पहले जोरावर सिंह गेट स्थित नेशनल आयुर्वेद कॉलेज के स्थान पर 17 साल तक विराजे और 1792 में उन्हें पुरानी बस्ती स्थित इस इमारत में लाया गया।


ठाकुर जी की धड़कन से चली घड़ी : महंत ने बताया कि उनके दादाजी जब यहां सेवा का कार्य करते थे, तब एक पल्स से चलने वाली घड़ी ठाकुर जी को धारण कराई जाती थी। ये सही वक्त भी बताती थी। बताया जाता है कि आजादी से पहले यहां एक अंग्रेज आया था, उसका कहना था कि यदि ठाकुर जी में प्राण हैं, तो ये घड़ी धड़कन से चलेगी। जब भगवान को घड़ी धारण कराई गई, तो वो चलने लगी। काफी लंबे समय तक भगवान को ये घड़ी धारण भी कराई गई थी। हालांकि, जब वो खराब हुई तो उसे सही करने के लिए कारीगर को दिया गया, लेकिन उसने इसे वापस नहीं दिया। उन्होंने बताया कि अभी भी भगवान को उसी घड़ी की प्रतिकृति के रूप में दूसरी घड़ी पहनाई जाती है।



दिन में 9 बार होती हैं झांकियां : महंत ने बताया कि गोपीनाथ जी के मंदिर में हर दिन 9 झांकियां होती हैं। सुबह 4:30 बजे से मंगला झांकी के साथ ठाकुर जी के पट खुलते हैं। इसके बाद अलग-अलग समय पर धूप, शृंगार, राजभोग और शाम को धूप, ग्वाल, संध्या, उल्वाई और शयन झांकी होती है। इसमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोग ठाकुर जी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। स्थानीय महिलाएं यहां सालों से ठाकुर जी की सेवा में भजन अर्पित करती हैं।



श्रद्धालु कन्हैया लाल ने बताया कि उनके दादा, परदादा यहां आते रहे हैं। उनका मानना है कि भगवान से जो भी मन्नत मांगी, उन्हें वो मिला है। वो यहां नियमित आकर भगवान के दर्शन करते हुए ठाकुर जी के नाम की माला फेरते हैं। श्रद्धालु मंजू शर्मा ने बताया कि वो आगरा से जयपुर शादी होकर आई थीं। उस समय वो आर्थिक रूप से संपन्न नहीं थीं। उनका मानना है कि जब गोपीनाथ भगवान की पूजा-अर्चना की, तो आज सब कुछ है। वो यहां नियमित भजन करती हैं। भगवान के प्रति आस्था के कारण वो हर साल पौष बड़े और नंद उत्सव का आयोजन करती हैं। एक अन्य श्रद्धालु मीनाक्षी शर्मा का मानना है कि जो ठाकुर जी के मन से दर्शन करने आते हैं उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है।


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