हरेश कुमार
कहीं भी विकास कार्य होते हैं या होंगे, तो घर टूटेंगे ही। नए जगह पर स्थानांतरित होंगे ही। आपको विकास भी चाहिए और घर भी नहीं टूटना चाहिए, ये नहीं हो सकता है।
किसी का घर टूटा है, तो उसका बाजार दर से चार गुना मुआवजा भी दिया गया है।
ऐसे में तो जो जैसे है, वैसे ही छोड़ देगा। कोई भी सरकार नहीं चाहेगी कि विकास कार्य हो। गंदगी में रहने वालों को यही सब शोभा देता है।
सड़कें चौड़ी होंगी, तो स्वाभाविक है, जो पहले से घर हैं, वो तोड़े जाएंगे। किसी भी इंसान को दुख होता है और होना स्वाभाविक है, यह एक सामान्य मानव स्वभाव है। इसमें कोई नई बात नहीं, लेकिन दूसरी तरफ देखें तो पुनर्निर्माण और विकास भी जरूरी है।
अयोध्या, काशी ही नहीं, आने वाले समय में मथुरा औरअन्य जगहों पर भी तोड़फोड़ होंगे, क्योंकि जो भी स्ट्रक्चर खड़े हैं, वो सैकड़ों साल पहले के हैं। जब भीड़ बढ़ जाती है, तो कई लोगों की मृत्यु हो जाती है। उन्हें जरूरी सहायता नहीं मिल पाती है।
आबादी बढ़ने के कारण पुरानी जगहों पर नए स्ट्र्क्चर को खड़ा करना संभव नहीं है।
अयोध्या का आज जो रंग है, काशी का आज जो रंग है, उसके लिए पुराने घरों को तोड़ा गया है, क्योंकि यह अपरिहार्य बन चुका था। हां, अगर किसी परिवार को उचित मुआवजा नहीं मिला तो वह संबंधित मंच पर विरोध दर्ज कर सकता है। उसकी सुनवाई होनी चाहिए, यह उसका अधिकार है, लेकिन इसकी आड़ में विकास का विरोध करना कहीं से भी सही नहीं। अयोध्या और काशी में नए बदलाव के बाद करोड़ों लोगों ने यात्रा की है। उनके आने से स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है। विश्व के नक्शे पर अयोध्या और काशी का नाम हुआ है।
एक समय काशी की तंग गलियों में घुसने के बाद अजीब तरह की गंध आती थी, क्योंकि हवा और सूर्य की किरणों को वहां पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। बदलाव को स्वीकार करने की जगह कुंठित नहीं होना चाहिए। हम संबंधित व्यक्ति,परिवार का दर्द समझ सकते हैं कि उन्हें नए बदलाव में दस किलोमीटर दूर आवास दिया गया। अब पास में तो कोई जगह है नहीं, जो उन्हें घर दिया जाता। हां, वहां अच्छी सड़कें न हो, अन्य सुविधाएं न डेवलप की गईं हों, तो इसके लिए सरकार जरूर दोषी है।
कुछ लोगों के अनुसार, अयोध्या औऱ काशी में पुराने घरों को तोड़े जाने और विस्थापन को लेकर समस्यायें थीं। लोगों को उचित मुआवजा नहीं मिला, लेकिन इस संबंध में किसी ने आवाज नहीं उठाई। आज की तारीख में सोशल मीडिया है, जहां आप अपनी बात रख सकते हैं। किसी ने इस संबंध में अपनी बात नहीं रखी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगभग 500 साल के बाद अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई। काशी में अभी काफी काम होना बाकी है। आने वाले कुछ समय में ज्ञानवापी मंदिर की फैसला आने के साथ ही वहां निर्माण कार्य होंगे ही, इसमें कोई शक नहीं। इसके साथ खड़े होने की जगह यथास्थिति के समर्थक कुंठा के शिकार हैं और कुछ नहीं। अयोध्या से भाजपा उम्मीदवार को नकारने के साथ-साथ काशी से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी उतना मत नहीं मिला। यह देश का दुर्भाग्य है और कुछ नहीं। आशा है कि हम विरोध को छोड़कर बदलाव को स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे।
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