हरेश कुमार
दिल्ली एमसीडी चुनाव में पिछले चुनाव से वोट प्रतिशत कम पड़ा। लोग चुनाव के दिन घर से निकलते नहीं है और चुनाव परिणाम के बाद विशेषज्ञ बन जाते हैं। दूसरा पक्ष थोक भाव में वोट देता है और उसके साथ कुछ वोट प्रतिशत मिल जाते हैं तो वह सीट निकाल लेता है। यह जीत का पुराना और आजमाया हुआ समीकरण है।
पाकिस्तान से आए हिंदुओं को आजतक वोटिंग का अधिकार नहीं मिला, वो टेंट में रहने को बाध्य हैं और दूसरी तरफ एक पक्ष को हर तरह की सुविधाएं मिल रही हैं।
भ्रष्टाचार और आपराधिक चरित्र के नेताओं पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दिखावा हुआ है। एमसीडी और बीएमसी देश की दो सबसे बड़ी और भ्रष्ट संस्था है। इसका बजट कई राज्यों के बजट से ज्यादा है। इसके बावजूद इनके अधीन आने वाले सड़क, नाली, स्कूल, अस्पताल की हालत दयनीय है।
चुनाव से पहले ही जीत का दावा कर घर बैठने वालों के लिए यह आखिरी चेतावनी है। 2024 में लोकसभा का चुनाव है। अभी भी सुधर जाने का समय है। वरना एमसीडी चुनाव के परिणाम को आधार मान लें तो लोकसभा चुनाव के लिए यह खतरे की घंटी है।
एमसीडी में भाजपा 15 साल रही। इसके खिलाफ एंटी इनकंबेसी फैक्टर था। यहां के लोगों की एक विचित्र मानसिकता है कि वो सत्ता में रह रहे लोगों को बदलने के लिए पूरा मन बना लेते हैं। उनके बदले चाहे जो आए, लेकिन बदल देना है।
इन सबके बावजूद गौतम गंभीर के क्षेत्र में एमसीडी में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है। मनोज तिवारी के क्षेत्र में भी कुल मिलाकर ठीकठाक प्रदर्शन रहा है, लेकिन यह उनके जीत की गारंटी नहीं कही जा सकती। बाकी सांसदों मीनाक्षी लेखी, हंस राज हंस, डॉक्टर हर्षवर्द्धन, रमेश बिधुड़ी, परवेश वर्मा के क्षेत्रों में भाजपा बुरी तरह से पिछड़ गई है। इसके कारणों पर समय रहते विचार करने की जरूरत है, ताकि लोकसभा में इस तरह के परिणाम न हों।
फ्री बिजली, फ्री पानी और डीटीसी में महिलाओं को मुफ्त यात्रा व शराब के धंधे से कमाए पैसे के बूते आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने एमसीडी पर कब्जा पाने में सफलता पाई है। यह सब तब है जबकि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के नेतृत्व में सुनयोजित दंगा हुआ था और इस दंगे में सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 55 लोग मारे गए थे और हजारों करोड़ की क्षति हुई थी। आईबी के अंकित शर्मा को चाकुओं से गोद डाला गया था। वहीं, दिलबर नेगी को जिंदा जलाया गया था। नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने के नाम पर 101 दिन जामिया नगर के रास्ते को बंद रखा गया था। वहीं, तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर गुंडागर्दी को दुनियाभर के लोगों ने देखा।
हम इतने जाति और वर्गों में बंटे हुए हैं कि हम अपनी व्यक्तिगत आकांक्षा के वशीभूत होकर सबकुछ भूल जाते हैं। यही कारण है कि यह देश इतने साल गुलाम रहा।
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