तस्वीर का एक पहलू यह भी है
देशभर के किसानों की आत्महत्या और बदहाली से पूरा देश चिंतित है। पिछले कुछ दिनों से देश की राजधानी दिल्ली में जंतर मंतर पर अपनी समस्याओं को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदर्शन भी ऐसा कि इनके साथ में मानव खोपड़ी भी था। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ये किसान कभी चूहा तो कभी पत्तों को तो कभी कुछ खाकर ये अपनी समस्याओं की तरफ देश के कर्णधारों का ध्यान दिलाना चाह रहे थे।
यहां तक सब ठीक था, लेकिन इन सबका आंदोलन और एमसीडी चुनाव एक साथ ही खत्म हुआ। बस इसी सबको लेकर शंका होती है कि ये लोग कपनी समस्याओं को केंद्र सरकार और पीएम के सामने रखना चखहते थे या किसी राजनीति के तहत यह सब प्रायोजित था।
खेती-किसानी राज्य सरकार का मुद्दा है। सभी को पता है कि पिछले कुछ सालों से कावेरी बेसिन के किसानों की स्थिति सही नहीं है। उन्हें सूखे की मार झेलनी पड़ रही है।
इसी तस्वीर का एक अन्य पहलू भी देखने-सुनने में आया। मरे चूहा खाने वाले इन किसानों के लिए महंगे सागर रत्ना होटल से खाना आ रहा था, हिमालयन वाटर मिनरल्स पी रहे थे और वापसी भी हवाई जहाज से।
सच में, ऐसे किसान और उनकी समस्याओं के लिए एक बार मन चिंतित जरूर हो जाता है। आखिर, वो कौन लोग थे, जो ये सब कर रहे थे। रात के अंधेरे में ऐसे बुद्धिजीवी और नेता इनसे मगला करते थे, जिनके बारे में चर्चा करना ही बेकार है।
दिल्ली नगरनिगम के चुनाव का खत्म होना और आंदोलनरत किसानों का अपने राज्य के सीएम के तथाकथित आश्वासन पर लौटना कई आशांकाओं को जन्म देता है।
बिहार चुनाव से पहले अवॉर्ड रिटर्न और इन्टॉलरेंस गिरोह की अतिसक्रियता को हम सबने देखा और झेला है। अब ऐसे लोग नजर भी नहीं आते हैं।
पंजाब चुनाव के समाप्त होने से पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों को अपने खुफिया सूत्रों से मतदाताओं के मूड का पता चल गया था और ये सब अपनी हार को देखते हुए एक सुनियोजित योजना के तहत ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं। प्रमाण के लिए ज्यादा सगर खपाने की जरूरत नहीं है कल ही आज तक चैनल पर आम आदमी के प्रवक्ता आशुतोष को जिन लोगों ने देखा व सुना वो अच्छी तरह से बता सकते हैं। आशुतोष मीडियाकर्मी रहे हैं और इन सबके बावजूद एमसीडी चुनाव में एग्जिट पोल के आंकड़ों पर वो ईवीएम के टेम्पर होने का सवाल उठा रहे थे। हे भगवान राजनीति में नतीजे अपने अनुसार न हो तो ऐसे लोग किसी भी हद तक आरोप-प्रत्यारोप का गंदा खेल खेल सकते हैं।
हरि अनंत हरि कथा अनंता...। इन सब पर अब बात करने से ही उलटी आने लगती है। अब इन सबमें थोड़ी भी लोक-लाज नहीं बची है। सो राइट टू रीकॉल पर बात करना इनके बूते की बात नहीं।
देशभर के किसानों की आत्महत्या और बदहाली से पूरा देश चिंतित है। पिछले कुछ दिनों से देश की राजधानी दिल्ली में जंतर मंतर पर अपनी समस्याओं को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदर्शन भी ऐसा कि इनके साथ में मानव खोपड़ी भी था। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ये किसान कभी चूहा तो कभी पत्तों को तो कभी कुछ खाकर ये अपनी समस्याओं की तरफ देश के कर्णधारों का ध्यान दिलाना चाह रहे थे।
यहां तक सब ठीक था, लेकिन इन सबका आंदोलन और एमसीडी चुनाव एक साथ ही खत्म हुआ। बस इसी सबको लेकर शंका होती है कि ये लोग कपनी समस्याओं को केंद्र सरकार और पीएम के सामने रखना चखहते थे या किसी राजनीति के तहत यह सब प्रायोजित था।
खेती-किसानी राज्य सरकार का मुद्दा है। सभी को पता है कि पिछले कुछ सालों से कावेरी बेसिन के किसानों की स्थिति सही नहीं है। उन्हें सूखे की मार झेलनी पड़ रही है।
इसी तस्वीर का एक अन्य पहलू भी देखने-सुनने में आया। मरे चूहा खाने वाले इन किसानों के लिए महंगे सागर रत्ना होटल से खाना आ रहा था, हिमालयन वाटर मिनरल्स पी रहे थे और वापसी भी हवाई जहाज से।
सच में, ऐसे किसान और उनकी समस्याओं के लिए एक बार मन चिंतित जरूर हो जाता है। आखिर, वो कौन लोग थे, जो ये सब कर रहे थे। रात के अंधेरे में ऐसे बुद्धिजीवी और नेता इनसे मगला करते थे, जिनके बारे में चर्चा करना ही बेकार है।
दिल्ली नगरनिगम के चुनाव का खत्म होना और आंदोलनरत किसानों का अपने राज्य के सीएम के तथाकथित आश्वासन पर लौटना कई आशांकाओं को जन्म देता है।
बिहार चुनाव से पहले अवॉर्ड रिटर्न और इन्टॉलरेंस गिरोह की अतिसक्रियता को हम सबने देखा और झेला है। अब ऐसे लोग नजर भी नहीं आते हैं।
पंजाब चुनाव के समाप्त होने से पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों को अपने खुफिया सूत्रों से मतदाताओं के मूड का पता चल गया था और ये सब अपनी हार को देखते हुए एक सुनियोजित योजना के तहत ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं। प्रमाण के लिए ज्यादा सगर खपाने की जरूरत नहीं है कल ही आज तक चैनल पर आम आदमी के प्रवक्ता आशुतोष को जिन लोगों ने देखा व सुना वो अच्छी तरह से बता सकते हैं। आशुतोष मीडियाकर्मी रहे हैं और इन सबके बावजूद एमसीडी चुनाव में एग्जिट पोल के आंकड़ों पर वो ईवीएम के टेम्पर होने का सवाल उठा रहे थे। हे भगवान राजनीति में नतीजे अपने अनुसार न हो तो ऐसे लोग किसी भी हद तक आरोप-प्रत्यारोप का गंदा खेल खेल सकते हैं।
हरि अनंत हरि कथा अनंता...। इन सब पर अब बात करने से ही उलटी आने लगती है। अब इन सबमें थोड़ी भी लोक-लाज नहीं बची है। सो राइट टू रीकॉल पर बात करना इनके बूते की बात नहीं।




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