Arvind Kejriwal को चने के झाड़ पर चढ़ाने और फिर गलत सलाह देकर राजनीतिक तौर पर बर्बाद करने में सबसे बड़ा योगदान वामपंथी बुद्धिजीवियों और ऐसे तमाम पत्रकारों का हाथ है, जिन्होंने इस दौरान जमकर लाभ लिया।
भारतीय राजनीति को न जानने वाले और वातानुकूलित कमरों में बैठकर रिपोर्टिंग करने वालों के साथ ऐसा होना अस्वभाविक नहीं। यह सब होना ही था।
अतिमहत्वाकांक्षा व्यक्ति को एक दिन कहीं का नहीं छोड़ता। पहली बार दिल्ली की जनता ने माफी देकर प्रचंड बहुमत से गद्दी सौंपी थी, लेकिन वो कहते हैं न कि ज्यादा काबिल व्यक्ति तीन बार मखता है और केजरीवाल के साथ यही हुआ है। यह अपने आप खत्म हो जाएंगे, लेकिन अगर केंद्र में बैठी भाजपा की सरकार ने थोड़ी-सी भी चालाकी दिखाई और सरकार को गिराने के किसी भी खेल को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन दिया तो इसे जीवनदान तो मिल ही जाएगा, भाजपा के लिए यह आत्मघाती कदम साबित होगा।
वैसे भी 21विधायकों पर जल्द ही फैसला आने वाला है। एमसीडी का चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी में भगदड़ मचना भी पहले से तय है। अभी देखते जाइए एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की प्रवृत्ति जोर मारने वाली है। दुख इसी बात का है कि इस पार्टी से देश की जनता ने वैकल्पिक राजनीति की बहुत ज्यादा उम्मीदें लगा रखी थी।सैकड़ों लेख मैंने खुद लिखे थे, लेकिन मेरा मोहभंग पहली बार में ही टूट गया जब इसने सीएम पद से इस्तीफा देकर भाजपा के पीएम कैंडिडेट के खिलाफ वाराणसी में ताल ठोंका था।
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