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रविवार, 30 अप्रैल 2017

हाथी और राजनीतिज्ञों में समानता

हरेश कुमार


नेता व हाथी दोनों में ही अद्भुत समानताएं हैं। एक तरफ हाथी जहां जंगलों में अपने संगी-साथियों के बीच रहना पसंद करता है तो वहीं दूसरी तरफ नेता हमेशा अपने समर्थकों व चापलूसों से घिरा रहना पसंद करता है। दोनों को ही उंगली करना पसंद नहीं है। दोनों सिर्फ हां, सुनने के आदी होते हैं। एक तरफ, हाथी अगर किसी कारणों से बिगड़ा तो वो पूरे क्षेत्र की आबादी और फसल को तहस-नहस कर देता है तो वहीं दूसरी तरफ, नेता की आवभगत में कोई कमी रह गई या वो चुनाव हार गया तो फिर से क्षेत्र में अशांति का वातावरण तैयार करने लगता है। इन्हें दूसरों से कोई मतलब नहीं। कई बार अगर हाथी पागल हो जाए तो उसे गोली मार दिया जाता है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ अगर नेता देशविरोधी गतिविधियों में भी शामिल हो तो वो अपने विशेषाधिकारों के कारण इससे बच निकलता है। खैर, सबकी अपनी विशेषताएं हैं। आइए आज हाथी और नेता की कुछ विशेषताओं पर एक नज़र डालते हैं।


1.एक तरफ हाथी के खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग होते हैं, तो दूसरी तरफ नेताओं की कथनी और करनी में कोई समानता नहीं होती।
2. दोनों को मेंटेन करना सबके बूते की बात नहीं होती। हाथी को खिलाने-पिलाने और रखने के लिए हमेशा महावत की जरूरत पड़ती है।
अगर,हाथी किन्हीं कारणों से भड़क गया तो फिर खैर नहीं। कई बार ऐसी स्थिति में महावत कंट्रोल कर लेता है, लेकिन कई बार वो महावत को भी नहीं छोड़ता।


3. नेता से दोस्ती व दुश्मनी एक सीमा तक ही सही होती है, जरूरत से ज्यादा दोस्ती या दुश्मनी बहुत महंगी पड़ती है।

4. नेता वह सामाजिक जानवर होता है जो हत्या, बलात्कार जैसा जघन्य अपराध करके भी अपने आपको निर्दोष और राजनीतिक विरोधियों की साजिश बताते नहीं थकता और उसके अपराधों को लेकर कोर्ट में एकाध अपवादों को छोड़ दें, तो सारे सबूत नाकाफी होते हैं। कुछ समय बाद सबूतों की कमी और छेड़छाड़ के कारण छोड़ दिए जाते हैं। इसके बाद जिन्होंने कम्प्लेन किया होता है उसकी खैर नहीं। कई की मौत हमेशा संदेहास्पद ही होती है, जबकि हकीकत सभी को मालूम होता है। नेता जो न करे या कराए वो कम है। आखिर, हम दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र में रहते हैं।


5. मरा हुआ हाथी सवा लाख का होता है, लेकिन मरा हुआ नेता शायद ही कभी काम आता हो। अपवादों की बात नहीं करता।


6. एक तरफ, सैनिक व पुलिसकर्मी देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी देते हैं, तो दूसरी तरफ नेता अपने हितों की सुरक्षा के लिए किसी की भी जान लेने में एक पल की देरी नहीं करता। यहां तक कि वो सैनिकों और पुलिसकर्मियों की शहादत को भी अपनी सुविधानुसार मार्केटिंग कर वोटों में भुना लेता है। जिसने देरी की उसकी नेतागीरी गई तेल लेने।

इसलिए, हमारे देश के ऋषि-मुनियों ने कहा है कि अपने से बलवान या किसी नेता से कभी पंगा मत लेना।

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