कभी भ्रष्टाचार को मिटाने का वादा किया था Arvind Kejriwal ने देश की जनता से, लेकिन सत्ता के अंधे मोह ने नरेंद्र मोदी विरोध और मुस्लिम तुष्टिकरण की ऐसी धुन लगाई कि न घर के रहे और न ही घाट के।
ऊपर से थुथरई कि ईवीएम में खराबी है। Lalu Prasad Yadav का#Arvindkejriwal क्यों न कहेगा। लालू प्रसाद यादव ने बिहार में बैलेट बॉक्स से जिन्न निकालने में महारत हासिल की है।
चारा घोटाला में जेल जाने के बाद अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने में कामयाबी पाई थी, विधायकों की संख्या कम पड़ते देख बिहार का बंटवारा करने में एक मिनट की देरी नहीं लगाई।दूसरी तरफ,
एक तरफ, लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला में अपने तमाम प्रयासों और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की वजह से केंद्रीय जांच एजेंसी से मिले सभी सहूलियतों के बावजूद पटना हाईकोर्ट के सख्त रूख के चलते जब जेल जाने से नहीं बच सके, तो अफनी अनपढ़ पत्नी राबड़ी देवी को किचन से बाहर निकालकर सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया, जबकि उस समय राष्ट्रीय जनता दल में कई वरिष्ठ और अनुभवी नेता इस पद के योग्य थे। सवाल ये है कि इतने सारे अनुभवी लोगों के होते हुए भी लालू प्रसाद यादव ने अनपढ़ पत्नी को मुख्यमंत्री की गद्दी पर क्यों बैठाया। इसका सीधा-सा जवाब है - क्योंकि इन्हें किसी पर भी विश्वास नहीं था। यहां तक कि मुख्यमंत्री को किसी तरह के विश्वासमत की दिक्कत न हो इसके लिए वर्षों से अलग राज्य के लिए मांग कर रहे शिबू सोरेन से समर्थन लेकर बिहार से झारखंड को अलग कर दिया, जबकि उस समय इस तरह का कोई आंदोलन भी नही चल रहा था। यानी सत्ता के लिए कथित धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का नारा लगाने वाले इस नेता को अपने घर-परिवार के अलावा किसी पर भी भरोसा न रहा।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की स्थिति इनसे कुछ अलग नहीं है इस मामले में
कभी
भ्रष्टाचार को मिटाने का वादा किया था देश की जनता से, लेकिन सत्ता
के अंधे मोह ने नरेंद्र मोदी विरोध और मुस्लिम तुष्टिकरण की ऐसी धुन लगाई कि न घर
के रहे और न ही घाट के।
अपनी पत्नी को
पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने का सपना देखते हुए इसने उसे वीआरएस दिया दिया और यह
मुख्य कारण है जिसके चलते बीजेपी से राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने वाले
नवजोत सिद्धू को कांग्रेस का हाथ थामना पड़ा। आम आदमी पार्टी के पास एक भी ऐसा
स्थानीय नेता नहीं था जिसकी मास अपील रही हो, सिद्धू यह रिक्त स्थान भर सकते थे,
लेकिन केजरीवाल के दिमाग में तो कुछ और चल रहा था। 24 घंटे साथ रहने वाले
बुद्धिजीवियों ने हां में हां मिलाकर इसकी पुष्टि कर दी थी।
ऊपर से थुथरई
कि ईवीएम में खराबी है। लालू प्रसाद का साथी केजरीवाल क्यों न कहेगा। लालू प्रसाद
यादव ने बिहार में बैलेट बॉक्स से जिन्न निकालने में महारत हासिल की है।
एक तरफ, लालू प्रसाद
यादव चारा घोटाला में अपने तमाम प्रयासों और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की वजह से
केंद्रीय जांच एजेंसी से मिले सभी सहूलियतों के बावजूद पटना हाईकोर्ट के सख्त रूख
के चलते जब जेल जाने से नहीं बच सके, तो अफनी अनपढ़ पत्नी राबड़ी देवी को किचन से
बाहर निकालकर सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया, जबकि उस समय
राष्ट्रीय जनता दल में कई वरिष्ठ और अनुभवी नेता इस पद के योग्य थे। सवाल ये है कि
इतने सारे अनुभवी लोगों के होते हुए भी लालू प्रसाद यादव ने अनपढ़ पत्नी को
मुख्यमंत्री की गद्दी पर क्यों बैठाया। इसका सीधा-सा जवाब है - क्योंकि इन्हें
किसी पर भी विश्वास नहीं था। यहां तक कि मुख्यमंत्री को किसी तरह के विश्वासमत की
दिक्कत न हो इसके लिए वर्षों से अलग राज्य के लिए मांग कर रहे शिबू सोरेन से
समर्थन लेकर बिहार से झारखंड को अलग कर दिया, जबकि उस समय इस तरह का कोई आंदोलन भी नही चल
रहा था। यानी सत्ता के लिए कथित धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का नारा लगाने वाले इस
नेता को अपने घर-परिवार के अलावा किसी पर भी भरोसा न रहा।
दिल्ली के
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की स्थिति इनसे कुछ अलग नहीं है इस मामले में-
लगातार तीन
टर्म तक दिल्ली की गद्दी पर बैठे शीला दीक्षित और केंद्र में कांग्रेस पार्टी के
नित-नए भ्रष्टाचार की खबरों ने देश और दिल्ली की जनता को
उद्वेलित कर दिया था। अन्ना हजारे के आंदोलन से लोगों को एक नई राजनीति की उम्मीद दिखी थी, लेकिन बदले में क्या मिला। एक वक्त
केजरीवाल के पास शीला दीक्षित के खिलाफ 370 पेज का सबूत था, लेकिन विधानसभा में सरकार
बनाने के लिए जैसे ही कांग्रेस के सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता पड़ी, तो एक ही
झटके में दिल्ली की जनता से किए सारे वादे हवा हो गए, जो व्यक्ति कल तक पूरे
दिल्ली को कॉमनवेल्थ गेम में शीला दीक्षित के खिलाफ अपने 370 पेजी सबूतों से पाट
दिया था वही विधानसभा में कांग्रेस से समर्थन पाने के बाद घोषणा करता है कि आप
सबूत लाओ हम केस करेंगे। एक ही झटके में इसके चेहरे से नकाब उतर गया। यह व्यक्ति
राजनीति की गंदगी को साफ करने राजनीति में आया था, लेकिन सबसे गंदा और घृणित चेहरा
बन गया।
थोड़े दिनों बाद जैसे ही लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई तो यह मुख्यमंत्री पद से
इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी की ओर से पीएम कैंडिडेट मौजूदा प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी को टक्कर देने वाराणसी चला गया। इसे लग रहा था कि अन्ना के आंदोलन के
सहारे और मुस्लिम वोटों का समर्थन पाकर यह सीधे प्रधानमंत्री बन सकता है। वाराणसी
ही नहीं पूरे देश की जनता ने इसे धूल चटा दी। पंजाब में इसे कुल मिलाकर 4 सीटें
मिली, तब यह फिर से दिल्ली वापस आया और दिल्ली की जनता से माफी मांगते हुए कहा –
पहली बार गलती हुई है आप हमें माफ कर दो, अब आगे से हम कभी आप सबको छोड़कर नहीं
जाएंगे, दिल्ली की जनता जो पहले से ही भ्रष्टाचार और कुशासन को लेकर परेशान थी ने
प्रचंड बहुमत से इसे गद्दी पर बिठाया, लेकिन ये रंगा सियार कुछ दिनों तक शांत रहने
के बाद फिर से अपने पुराने रंग में आ गया।
यह यूपी के दादरी में अखलाक के मारे जाने पर स्यापा करने पहुंच जाता है,
गुजरात के ऊना में दलितों पर हुए अत्याचार के खिलाफ आंदोलन करने चला जाता है।
रोहित वेमुला मामले में टांग फंसाता है, लेकिन दिल्ली में डॉक्टर पंकज नारंग की
हत्या अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों द्वारा किए जाने पर इसके मुंह से एक शब्द नहीं
निकलता है।
दिल्ली के जंतर-मंतर पर इसकी पार्टी द्वारा आयोजित किसान सभा में राजस्थान का
एक किसान गजेंद्र आत्महत्या कर लेता है, लेकिन यह अपना भाषण चालू रखता है।
हरियाणा के एक पूर्व सैनिक जो पहले से ही कई आरोपों में घिरा हुआ था वन रैंक,
वन पेंशन आंदोलन के दौरान आत्महत्या कर लेता है तो यह सीएम के संचित कोष से 1
करोड़ रुपए देने का वादा करता है, जबकि इसके पहले जम्मू-कश्मीर में शहीद सैनिकों
के मारे जाने पर न ये किसी के घर गया और न ही किसी को दिल्ली सरकार की तरफ से किसी
तरह की आर्थिक सहायता दी।
यह पंजाब में चुनाव जीतने के लिए खालिस्तानी आतंकियों का साथ लेने से भी नहीं
चूकता। यहां तक कि गोवा में ईसाई मतों को पाने के लिए इसने मदर टेरेसा को संत
घोषित किए जाने के कार्यक्रम में भी भाग लिया।
बहुमत से चुने गए प्रधानमंत्री को साइकोपैथ कहना इसे पसंद है, क्योंकि मुस्लिम
कट्टरपंथियों को यह भाता है। यह व्यक्ति ईमानदार राजनीति की बात करता था। जबकि इसका
कानून मंत्री फर्जी डिग्रीधारी निकला। ऐसा नहीं कि इसे जानकारी न हो, इसे सब बातों
की जानकारी थी, लेकिन अंत तक बचाव करता रहा। इसने दिल्ली के लोगों से कहा था-
मैंने अपने सभी विधायकों की जांच की है। फिर आए दिन विधायकों के भ्रष्टाचार के
किस्से आम होने पर अपनी ही बातों से मुकरने लगा।
सीमापुरी की आम आदमी पार्टी की महिला कार्यकर्ता की रोड एक्सीडेंट में मौत की
जांच होनी चाहिए, क्योंकि यह साधारण एक्सीडेंट नहीं था और कभी भी इसे सार्वजनिक
नहीं किया गया। कहने को तो बहुत कुछ है, लेकिन इतना ही कहना चाहूंगा कि इसने आने
वाले समय में राजनीतिक आंदोलनों का गला घोंट दिया। अब शायद ही दिल्ली और देश की
जनता इस पर कभी विश्वास करे।
इसके कॉन्फिडेंस को तो देखिए पंजाब में एक नशेड़ी को आगे करके यह वहां के
लोगों को नशा मुक्ति का संदेश देता है, जबकि दिल्ली में अपने दो साल के कार्यकाल
के दौरान 350 से अधिक शराब दुकानों का लाइसेंस इसने जारी किया।
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