हरेश कुमार
पेड़-पौधों के सूख जाने पर उसकी जड़ में पानी देने से क्या लाभ? ध्यान तो तब देना था जब उसे जरूरत थी। अब तो वो निर्जीव हो गया। आप अब उसे जलावन के काम लाओ या फर्नीचर के। लकड़ी महंगी है तो फर्नीचर बनेगा और अगर सस्ती है तो जलावन के काम आएगा। इससे ज्यादा तो कुछ होने से रहा। जब आप अपने बाप-दादा की थाती को संभाल नहीं सकते तो, फिर ऐंठन किस बात पर। अपनी अकड़ को ठीक करें और ध्यान दें कि आपने क्या-क्या खो दिया है।
ठीक उसी तरह नाते-रिश्ते होते हैं अगर उनकी देखभाल न की जाए, तो एक समय के बाद वो खत्म हो जाते हैं।
सुख में आप याद करने से पहले याद करना कि कभी दुख की घड़ी में भी पूछा था उस बंदे को। दिल पर हाथ रख कर पूछना कभी मौका मिले तो।
आए दिन ऐसे लोग मिलते हैं जो कहते हैं कि आपको फलांना यज्ञ में आना ही है, ऐसे लोगों को जब आप कभी दुख की घड़ी में याद करो तो गदहे के सिंग की तरह गायब होते हैं। आपसे संपर्क करना बंद देंगे या होगा भी तो ये कहकर टाल देंगे कि बाद में बात करता हूं, अभी किसी काम में व्यस्त हूं। लेकिन वो घड़ी कभी नहीं आएगी, जब वो व्यस्त नहीं होंगे और आपकी बात सुनेंगे। फिर ऐसे लोगों की फिक्र आप क्यों करते हो?
गोस्वामी तुलसीदास की इस रचना को याद करिए-
तुलसी भरोसे राम के निर्भय होके सोय।
अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होए।।
आप अपने आप को मजबूत करिए। मेरा यकीन मानिए कि ऐसे लोगों की आपको फिर कभी जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि वो आपको खोजते आएंगे।
दूसरों के सुख-दुख में भाग लेना अच्छी बात है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इस वजह से समाज में एक-दूसरे के काम में आना ही मनुष्यता है, लेकिन हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि कोई आपका फायदा तो नहीं उठा रहा। ऐसा तो नहीं कि आप सब के काम आएं और आपको जब लोगों की जरूरत पड़े तो लोग कन्नी काटने लगे। फिर विचार करिए कि क्या आप सही थे या वो लोग।
रिश्ते-नाते जरूरत हैं और इन्हीं से समाज बनता है, लेकिन ये हमेशा देखें कि कोई आपका दुरुपयोग तो न करे।
2. रिश्ते-नातों की उलझती कहानी
आए दिन ऐसा देखने को मिलता है कि जब तक बेटा कमाता है, तब तक बाप आंख मूंद लेता है कि पैसा कहां से आ रहा है। लीगल या इलीगल जानने की जरूरत नहीं समझता। कौन जाए झमेले में पड़ने। इतनी फुर्सत किसे।
अचानक से जब एकदिन पुलिस का छापा घर पर पड़ता है तो बात खुलती है कि जिसके पैसों पर ऐश कर रहे थे वो क्या गुल खिला रहा था। अब आप माथा पीटें या कुछ और क्या फर्क पड़ता है जनाब। देखना तो तब था जब लोगों ने कहा था कि एक बार देखो तो सही। उस समय आपके पास समय नहीं था। शायद तब ध्यान दिया होता तो कुछ बात बनती। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
पेड़-पौधों के सूख जाने पर उसकी जड़ में पानी देने से क्या लाभ? ध्यान तो तब देना था जब उसे जरूरत थी। अब तो वो निर्जीव हो गया। आप अब उसे जलावन के काम लाओ या फर्नीचर के। लकड़ी महंगी है तो फर्नीचर बनेगा और अगर सस्ती है तो जलावन के काम आएगा। इससे ज्यादा तो कुछ होने से रहा। जब आप अपने बाप-दादा की थाती को संभाल नहीं सकते तो, फिर ऐंठन किस बात पर। अपनी अकड़ को ठीक करें और ध्यान दें कि आपने क्या-क्या खो दिया है।
ठीक उसी तरह नाते-रिश्ते होते हैं अगर उनकी देखभाल न की जाए, तो एक समय के बाद वो खत्म हो जाते हैं।
सुख में आप याद करने से पहले याद करना कि कभी दुख की घड़ी में भी पूछा था उस बंदे को। दिल पर हाथ रख कर पूछना कभी मौका मिले तो।
आए दिन ऐसे लोग मिलते हैं जो कहते हैं कि आपको फलांना यज्ञ में आना ही है, ऐसे लोगों को जब आप कभी दुख की घड़ी में याद करो तो गदहे के सिंग की तरह गायब होते हैं। आपसे संपर्क करना बंद देंगे या होगा भी तो ये कहकर टाल देंगे कि बाद में बात करता हूं, अभी किसी काम में व्यस्त हूं। लेकिन वो घड़ी कभी नहीं आएगी, जब वो व्यस्त नहीं होंगे और आपकी बात सुनेंगे। फिर ऐसे लोगों की फिक्र आप क्यों करते हो?
गोस्वामी तुलसीदास की इस रचना को याद करिए-
तुलसी भरोसे राम के निर्भय होके सोय।
अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होए।।
आप अपने आप को मजबूत करिए। मेरा यकीन मानिए कि ऐसे लोगों की आपको फिर कभी जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि वो आपको खोजते आएंगे।
दूसरों के सुख-दुख में भाग लेना अच्छी बात है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इस वजह से समाज में एक-दूसरे के काम में आना ही मनुष्यता है, लेकिन हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि कोई आपका फायदा तो नहीं उठा रहा। ऐसा तो नहीं कि आप सब के काम आएं और आपको जब लोगों की जरूरत पड़े तो लोग कन्नी काटने लगे। फिर विचार करिए कि क्या आप सही थे या वो लोग।
रिश्ते-नाते जरूरत हैं और इन्हीं से समाज बनता है, लेकिन ये हमेशा देखें कि कोई आपका दुरुपयोग तो न करे।
2. रिश्ते-नातों की उलझती कहानी
आए दिन ऐसा देखने को मिलता है कि जब तक बेटा कमाता है, तब तक बाप आंख मूंद लेता है कि पैसा कहां से आ रहा है। लीगल या इलीगल जानने की जरूरत नहीं समझता। कौन जाए झमेले में पड़ने। इतनी फुर्सत किसे।
अचानक से जब एकदिन पुलिस का छापा घर पर पड़ता है तो बात खुलती है कि जिसके पैसों पर ऐश कर रहे थे वो क्या गुल खिला रहा था। अब आप माथा पीटें या कुछ और क्या फर्क पड़ता है जनाब। देखना तो तब था जब लोगों ने कहा था कि एक बार देखो तो सही। उस समय आपके पास समय नहीं था। शायद तब ध्यान दिया होता तो कुछ बात बनती। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
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