पेज

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

अभ्यास करने पर मूर्ख व्यक्ति भी एक दिन कुशलता प्राप्त कर लेता है




करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। रसरी आवत-जात के, सिल पर परत निशान ।।- कविवर वृन्द का यह दोहा बहुत कुछ कहता है।

जिस प्रकार बार-बार रस्सी के आने-जाने से कठोर पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं, उसी प्रकार बार-बार अभ्यास करने पर मूर्ख व्यक्ति भी एक दिन कुशलता प्राप्त कर लेता है।

सारांश यह है कि निरंतर अभ्यास कम कुशल और कुशल व्यक्ति को पूर्णतया पारंगत बना देता है। अभ्यास की आवश्यकता शारीरिक और मानसिक दोनों कार्यों में समान रूप से पड़ती है । लुहार, बढ़ई, सुनार, दर्जी, धोबी आदि का अभ्यास साध्य है। ये कलाएं बार-बार अभ्यास करने से ही सीखी जा सकती हैं।


दर्जी का बालक पहले ही दिन बढिया कोट-पैंट नहीं सिल सकता। इसी प्रकार कोई भी मेकैनिक इंजीनियर भी अभ्यास के द्वारा ही अपने कार्य में निपुणता प्राप्त करता है। विद्या प्राप्ति के विषय में भी यही बात सत्य हैं। डॉ. को रोगों के लक्षण और दवाओं के नाम रटने पड़ते हैं।

वकील को कानून की धाराएं रटनी पड़ती हैं । इसी प्रकार मंत्र रटने के बाद ही ब्राह्मण हवन यज्ञ आदि करा पाते हैं। जिस प्रकार रखे हुए शस्त्र की धार को जंग खा जाती है उसी प्रकार अभ्यास के अभाव में मनुष्य का ज्ञान कुंठित हो जाता है और विद्या नष्ट हो जाती है ।

इसी बात के अनेक उदाहरण हैं कि अभ्यास के बल पर मनुष्यों ने विशेष सफलता पाई। एकलव्य ने गुरु के अभाव में धनुर्विद्या में अद्‌भुत योग्यता प्राप्त की। कालिदास वज्र मूर्ख थे परन्तु अभ्यास के बल पर संस्कृत के महान् कवियों की श्रेणी में विराजमान हुए। वाल्मीकि डाकू से आदि-कविबने। अब्राहिम लिंकन अनेक चुनाव हारने के बाद अंततोगत्वा अमेरिका के राष्ट्रपति बनने में सफल हुए।

यह तो स्पष्ट हो ही चुका है कि अभ्यास सफलता की कुंजी हैं । परंतु अभ्यास के कुछ नियम हैं। अभ्यास निरंतर नियमपूर्वक और समय सीमा में होना चाहिए। यदि एक पहलवान एक दिन में एक हजार दंड निकाले और दस दिन तक एक भी दंड न निकाले तो इससे कोई लाभ नहीं होगा। अभ्यास निरंतरता के साथ-साथ धैर्य भी चाहता है ।


कई बार परिस्थितिवश अभ्यास कार्यक्रम में व्यवधान आ जाता है, ऐसी स्थिति में हमें धैर्य नहीं खोना चाहिए और अपने लक्ष्य को सामने रखकर तब तक अभ्यास करते रहना चाहिए जब तक हम इच्छित सिद्धि को प्राप्त न कर लें। बड़े-बड़े साधक निरंतर साधना करके ही उच्चतम शिखर पर पहुंचे । देव-दानव, ऋषि-मुनि तप के द्वारा बड़े-बड़े वरदान प्रदान करने में सफल हुए ।


कई खिलाड़ियों ने अपने-अपने क्षेत्र में अभ्यास के द्वारा कीर्तिमान स्थापित किए।  हमें सदैव अच्छी बातों का ही अभ्यास करना चाहिए। तभी हमारा जीवन सफल हो सकेगा। यदि हम कुप्रवृत्तियों का अभ्यास करने में जुट गए तो जीवन नष्ट हो जाएगा। जुआ खेलना, शराब पीना, सिगरेट पीना ऐसी ही कुप्रवृत्तियां है जो हमें पतन के गर्त में डाल देंगी । लेकिन प्रतिदिन स्वाध्याय करना, सत्संगति करना, भगवान का भजन-पूजन करना ऐसे गुण हैं जिनका अभ्यास करके हम जीवन को श्रेष्ठतम बना सकते हैं ।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें