प्रसिद्ध पर्यावरणविद, गांधीवादी विचारधारा के प्रवर्तक अनुपम मिश्र के जाने से जो जगह खाली हुई है आने वाले समय में उसकी भरपाई शायद ही कोई कर पाए। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
1948 में अनुपम मिश्र का जन्म वर्धा में हुआ था।पिताजी हिन्दी के महान कवि भवानी प्रसाद मिश्र। यह भी आपको तब तक नहीं पता चलेगा कि वे भवानी प्रसाद मिश्र के बेटे हैं जब तक कोई दूसरा न बता दे। मन्ना (भवानी प्रसाद मिश्र) के बारे में लिखे अपने पहले और संभवतः एकमात्र लेख में वे लिखते हैं- "पिता पर उनके बेटे-बेटी खुद लिखें यह मन्ना को पसंद नहीं था।" परवरिश की यह समझ उनके काम में भी दिखती है। इसलिए उनका परिचय अनुपम मिश्र हैं। भवानी प्रसाद मिश्र के बेटे अनुपम मिश्र कदापि नहीं। यह निजी मामला है। मन्ना उनके पिता थे और वैसे ही पिता थे जैसे आमतौर पर एक पिता होता है। बस। पढ़ाई-लिखाई तो जो हुई वह हुई।
1969 में जब गाँधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़े तो एम.ए. कर चुके थे। लेकिन यह डिग्रीवाली शिक्षा किस काम की जब अनुपम मिश्र की समझ ज्ञान के उच्चतम धरातल पर विकसित होती हो।
अपने एक लेख पर्यावरण के पाठ में वे लिखते हैं- "लिखत-पढ़तवाली सब चीजें औपचारिक होती हैं। सब कक्षा में, स्कूल में बैठकर नहीं होता है। इतने बड़े समाज का संचालन करने, उसे सिखाने के लिए कुछ और ही करना होता है। कुछ तो रात को मां की गोदी में सोते-सोते समझ में आता है तो कुछ काका, दादा, के कंधों पर बैठ चलते-चलते समझ में आता है।यह उसी ढंग का काम है-जीवन शिक्षा का।
भारत और भारतीयता की ऐसी गहरी समझ के साक्षात उदाहरण अनुपम मिश्र ने कुल छोटी-बड़ी 17 पुस्तके लिखी हैं जिनमें अधिकांश अब उपलब्ध नहीं है। एक बार नानाजी देशमुख ने उनसे कहा कि 'आज भी खरे हैं तालाब' के बाद कोई और किताब लिख रहे हैं क्या? अनुपम जी ने सहजता से उत्तर दिया- जरूरत नहीं है। एक से काम पूरा हो जाता है तो दूसरी किताब लिखने की क्या जरूरत है।
अनुपम मिश्र को भले ही लिखने की जरूरत नहीं हो लेकिन हमें अनुपम मिश्र को बहुत संजीदगी से पढ़ने की जरूरत है।
अनुपम मिश्र की उपलब्ध पुस्तकें
1. आज भी खरे हैं तालाब
2. राजस्थान की रजत बूंदे
3. साफ माथे का समाज (यह लेख संग्रह पेंगुइन ने प्रकाशित किया है।)
2. राजस्थान की रजत बूंदे
3. साफ माथे का समाज (यह लेख संग्रह पेंगुइन ने प्रकाशित किया है।)
(इंडिया वाटर पोर्टल से साभार)
उन्होंने गांधी शांति प्रतिष्ठान में पर्यावरण कक्ष की स्थापना की थी। वे इस प्रतिष्ठान की पत्रिका गाँधी मार्ग के संस्थापक और संपादक थे। उन्होंने बाढ़ के पानी के प्रबंधन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का महत्वपूर्ण काम किया। वे 2001 में दिल्ली में स्थापित सेंटर फॉर एनवायरन्मेंट एंड फूड सिक्युरिटी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। चंडी प्रसाद भट्ट के साथ काम करते हुए उन्होंने उत्तराखंड के चिपको आंदोलन में जंगलों को बचाने के लिये सहयोग किया था। उनकी पुस्तक 'आज भी खारे हैं तालाब' ब्रेल सहित १३ भाषाओं में प्रकाशित हुई जिसकी 1 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं।
वे राजेन्द्र सिंह के बनाये तरुण भारत संघ के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे। 2007-2008 में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार के चंद्रशेखर आज़ाद राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2009 में उन्होंने टेड (टेक्नोलॉजी एंटरटेनमेंट एंड डिजाइन) द्वारा आयोजित सम्मेलन को संबोधित किया था। 2011 में उन्हें देश के प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इससे पहले 1996 में उन्हें देश के सर्वोच्च इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) में आज सवेरे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 68 वर्ष के थे। वे पिछले 1 साल से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे।
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दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) में आज सवेरे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 68 वर्ष के थे। वे पिछले 1 साल से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे।
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