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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

...ये पत्रकारिता की आड़ लेकर राजनीति कर रहे हैं



भाई को टिकट के लिए जब आप पैरवी करेंगे और फिर चुनाव में एक खास पार्टी के हितों को आगे बढ़ाएंगे इसके बाद भी आप ये कहेंगे कि उससे मुझे कुछ लेना-देना नहीं तो ये ज्यादा काबिलियत है और कुछ नहीं। कह दे कि पैरवी नहीं की थी। हमें भी अच्छा नहीं लगता, लेकिन इस आदमी ने जिस तरह से एक खास पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाया और खुलकर दलाली की उससे हम सभी निराश हैं। ये पत्रकारिता की आड़ लेकर राजनीति कर रहे हैं। कुछ साल पहले तक हम इन्हें एक सही औऱ संतुलित व्यक्ति ही नहीं अच्छा पत्रकार मानते थे, लेकिन कलई खुलने के बाद अब ये मेरी घृणा के पात्र बन चुके हैं। 


दादरी में अखलाक मर्डर के समय टीवी का स्क्रीन काला करना और दिल्ली में डॉक्टर पंकज नारंग की हत्या अवैध तौर पर रह रहे बांग्लादेशी मुसलमानों द्वारा भारत से बांग्लादेश की हार की खुन्नस में किए जाने को रोड रेज बताना कोई इनसे सीखे।


एक कांग्रेसी नेता अजय अरोड़ा और उनके समर्थकों को चांदनी चौक का आम व्यापारी बताकर नोटबंदी की आलोचना करते नहीं थक रहे थे, थोड़ी देर में ही इनका ये चेहरा भी बाहर आ गया।

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