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शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

'पीके' पर तालियां बजाने वाले 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' की हकीकत को स्वीकार करने को तैयार नहीं

हरेश कुमार



इस देश में आमिर खान 'पीके' में हिंदू मान्यताओं पर जमकर कटाक्ष करते हैं और देशभर में इस सिनेमा को भरपूर समर्थन मिलता है, लेकिन 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' में बुर्काधारी मुस्लिम महिलाओं की फैंटेसी को दिखाए जाने पर एक तरफ भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड मान्यता देने से इनकार करती है तो दूसरी तरफ मुस्लिम धार्मिक नेता व बुद्धिजीवी फिल्म के निर्माता प्रकाश झा को भोपाल न आने देने की धमकी देते हैं।

गौरतलब है कि इस फिल्म की शूटिंग भोपाल में हुई है और भोपाल के मुस्लिम महिलाओं की कहानियां है इसमें। यही वर्ग हिंदुओं के अराध्य माता सरस्वती की नंगी मूर्ति बनाने वाले चित्रकार को सिर-आंखों पर बिठाती है।सच में ये चित्रकार थे तो एक बार अपनी मां कई ऐसी ही तस्वीर बनाते फिर हम इनके चरण को पूजते, कश जीइस देश में आमिर खान 'पीके' में हिंदू मान्यताओं पर जमकर कटाक्ष करते हैं और देशभर में इस सिनेमा को भरपूर समर्थन मिलता है, लेकिन 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' में बुर्काधारी मुस्लिम महिलाओं की फैंटेसी को दिखाए जाने पर एक तरफ भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड मान्यता देने से इनकार करती है तो दूसरी तरफ मुस्लिम धार्मिक नेता व बुद्धिजीवी फिल्म के निर्माता प्रकाश झा को भोपाल न आने देने की धमकी देते हैं।



गौरतलब है कि इस फिल्म की शूटिंग भोपाल में हुई है और भोपाल के मुस्लिम महिलाओं की कहानियां है इसमें। यही वर्ग हिंदुओं के अराध्य माता सरस्वती की नंगी मूर्ति बनाने वाले चित्रकार को सिर-आंखों पर बिठाती है।सच में ये चित्रकार थे तो एक बार अपनी मां की ऐसी ही तस्वीर बनाते फिर हम इनके चरण को पूजते, काश जीते जी वो ऐसा कर पाते।

सच्चाई देखना और सुनना इनके वश की बात नहीं।बस लंबी-लंबी बातें करेंगे।इन्हें यह मालूम होना चाहिए कि आप किसी की भावनाओं को ज्यादा समय तक दबाकर रखेंगे तो एक दिन विस्फोट तय मानिए फिर आप जैसे लोगों को अपनी धोती बचाकर भागनी होगी।

हमारा विरोध इसी तरह की दोहरी और दोगली मानसिकताओं से है। किसी धर्म या जाति के लोगों से नहीं बस ऐसे लोगों से जो अपने घर की खिड़कियों और दरवाजों को बंद रखते हैं और ताजी हवा और विचारों को अपने घर में घुसने नहीं देना चाहते हैँ। एक दिन प्रदूषित हवा और विचारों के कारण इन सबकी (वैचारिक) मौत हो जाती है, लेकिन ये कठमुल्ले और इनको वैचारिक समर्थन देने वाले सुनने को तैयार नहीं।ते जी वो ऐसा कर पाते।

राजस्थान में रानी पद्मावती को मिथकीय चरित्र बताने वाले इतिहासकार इरफान हबीब, गीतकार जावेद अख्तर जैसे बुद्धिजीवी और इन्हें समर्थन करने वाले लोगों की इस देश में कोई कमी नहीं। ऐसा नहीं है कि इन सबको सच्चाई नहीं मालूम है, लेकिन ये आदत से मजबूर हैं। अगर, रानी पद्मावती का जौहर एक मिथक है तो फिर जौहर स्थल और पूरा इतिहास ही मिथकीय है।

सच्चाई देखना और सुनना इनके वश की बात नहीं।बस लंबी-लंबी बातें करेंगे।इन्हें यह मालूम होना चाहिए कि आप किसी की भावनाओं को ज्यादा समय तक दबाकर रखेंगे तो एक दिन विस्फोट तय मानिए फिर आप जैसे लोगों को अपनी धोती बचाकर भागनी होगी।

हमारा विरोध इसी तरह की दोहरी और दोगली मानसिकताओं से है। किसी धर्म या जाति के लोगों से नहीं बस ऐसे लोगों से जो अपने घर की खिड़कियों और दरवाजों को बंद रखते हैं और ताजी हवा और विचारों को अपने घर में घुसने नहीं देना चाहते हैँ। एक दिन प्रदूषित हवा और विचारों के कारण इन सबकी (वैचारिक) मौत हो जाती है, लेकिन ये कठमुल्ले और इनको वैचारिक समर्थन देने वाले सुनने को तैयार नहीं।

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